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Tata Sons ने जीती Air India की बोली, 68 साल बाद फिर टाटा की होगी एयर इंडिया

Air India

Tata Sons To Acquire Air India : टाटा संस ने एयर इंडिया की बोली जीत ली है। कंपनी ने इस सरकारी एयरलाइंस के लिए सबसे अधिक 18,000 करोड़ रुपये की बोली लगाई। इसी के साथ अब Tata Sons के पास देश में 3 एयरलाइंस होंगी। हांलाकि अभी नागरिक उड्डयन मंत्रालय से इसकी पुष्टि नहीं हुई है।

किस-किस ने बोली लगाई

एअर इंडिया (Air India) के लिए टाटा संस (Tata Sons) ने 18,000 करोड़ रुपये की बोली लगाई। वहीं इस दौड़ में शामिल स्पाइसजेट के अजय सिंह के कंसोर्टियम ने 15,100 करोड़ रुपये की बोली लगाई। इस तरह टाटा संस ने 2,900 करोड़ रुपये से ज्यादा के अंतर से Air India के मालिकाना हक के लिए लगाई बोली को जीत लिया। एयर इंडिया के लिए टाटा ग्रुप के साथ-साथ स्पाइसजेट के अजय सिंह ने बोली लगाई थी।

सरकार एयर इंडिया को क्यों बेच रही है?

सरकार ने साल 2007 में एअर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस का मर्जर कर दिया था। सरकार ने मर्जर के पीछे फ्यूल की बढ़ती कीमत, प्राइवेट एयरलाइन कंपनियों से मिल रहे कॉम्पिटीशन को वजह बताया था। हालांकि साल 2000 से लेकर 2006 तक एअर इंडिया मुनाफा कमा रही थी, लेकिन मर्जर के बाद परेशानी बढ़ गई। कंपनी पर कर्ज लगातार बढ़ता गया। कंपनी पर 31 मार्च 2019 तक 60 हजार करोड़ से भी ज्यादा का कर्ज था। वित्त वर्ष 2020-21 के लिए अनुमान लगाया गया था कि एयरलाइन को 9 हजार करोड़ का घाटा हो सकता है।

एयरलाइन की शुरुआत

आपको बता दें कि जेआरडी टाटा ने साल 1932 में टाटा एयर सर्विसेज शुरू की थी, जो बाद में टाटा एयरलाइंस हुई और 29 जुलाई 1946 को यह पब्लिक लिमिटेड कंपनी हो गई थी। सरकार ने 1953 में टाटा एयरलाइंस का अधिग्रहण कर लिया और यह सरकारी कंपनी बन गई। अब एक बार फिर टाटा ग्रुप की टाटा संस ने इस एयरलाइन में दिलचस्पी दिखाई है। यदि इस बात की पुष्टि हो जाती है कि टाटा ने बोली जीत ली है तो लगभग 68 साल बाद एक बार फिर एयर इंडिया टाटा ग्रुप के पास आ जाएगी। टाटा संस की ग्रुप में 66 प्रतिशत हिस्सेदारी है और ये टाटा समूह की प्रमुख स्टेकहोल्डर है।

समूची हिस्सेदारी बिक रही

केंद्र सरकार सरकारी स्वामित्व वाली एयरलाइन में अपनी 100 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचना चाहती है। इसमें एआई एक्सप्रेस लिमिटेड में एयर इंडिया की 100 प्रतिशत हिस्सेदारी और एयर इंडिया एसएटीएस एयरपोर्ट सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड में 50 प्रतिशत हिस्सेदारी शामिल हैं। विमानन कंपनी साल 2007 में घरेलू ऑपरेटर इंडियन एयरलाइंस के साथ विलय के बाद से घाटे में है। सरकार साल 2017 से ही एयर इंडिया के विनिवेश का प्रयास कर रही है।

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