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Najla Bouden Romdhane : ट्यूनिशिया में पहली महिला के प्रधानमंत्री बनने से दुनिया हैरान

Najla Bouden Romdhane

इंजीनियरिंग स्कूल में टीचर हैं Najla Bouden Romdhane

Najla Bouden Romdhane : ट्यूनिशिया के राष्ट्रपति ने बुधवार को एक ऐतिहासिक ऐलान किया। उन्होंने देश की पहली महिला प्रधानमंत्री को नामित किया। राष्ट्रपति ने उनके पूर्वाधिकारी को बर्खास्त किए जाने के बाद एक अंतरिम सरकार का नेतृत्व करने के लिए इंजीनियरिंग स्कूल की टीचर 63 साल की Najla Bouden Romdhane को इस पद के लिए चुना है। अरब देशों में यह पहली बार है जब किसी महिला को देश की कमान संभालने के लिए मिली है। शायद इसीलिए इन देशों में महिलाएं खुद पूरी तरह से स्वतंत्र नहीं हैं क्योंकि उनका नेतृत्व हमेशा से पुरुषों ने किया। खैर.. जो सुर्खियां बनीं उनमें इसे ‘हैरान करने वाला फैसला’ बताया। आज जानेंगे कि क्या वाकई अरब की दुनिया में महिलाओं की स्थिति इतनी बुरी हो चुकी है कि एक महिला का प्रधानमंत्री बनना सभी को हैरान कर रहा है?

ट्यूनीशिया में क्या हाल हैं?

उत्तरी अफ्रीका का देश ट्यूनीशिया संकटों से जूझ रहा है। करीब 10 साल पहले ट्यूनीशिया में एक जनक्रांति हुई थी, जिसे ‘अरब क्रांति’ कहा गया। इस दौरान लोगों ने लंबे समय से देश पर शासन कर रहे तानाशाह जीन अल अबिदीन बेन अली को सत्ता से बेदखल कर दिया था। इसके बाद ‘अरब बसंत’ का उदय हुआ और एक लोकतांत्रिक बदलावों की उम्मीद जगी थी। लेकिन आज सवाल यह है कि उस क्रांति का हासिल क्या है, जिसकी शुरुआत एक युवा के खुद को आग लगाने से हुई थी।

आए दिन ट्यूनीशिया विरोध प्रदर्शनों का सामना कर रहा है। लोगों के पास नौकरियां नहीं है और जो नौकरी में हैं उन्हें सैलरी नहीं मिल रही। भ्रष्टाचार अपने चरम पर है और चारों तरफ सिर्फ भ्रम और संघर्ष फैला हुआ है। लोगों में निराशा फैली हुई है कि ‘अरब बसंत’ शायद अब कभी नहीं आएगा। राजनीतिक पटल पर देश लंबे समय से उथल-पुथल से जूझ रहा है। जनता ने तानाशाह को कुर्सी से तो हटा दिया लेकिन उसके बाद लगातार गिरती अर्थव्यवस्था से देश अभी तक उभर नहीं पाया है। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक 10 सालों में ट्यूनीशिया में 12 बार सरकार बदल चुकी है। सरकारी सुविधाएं पूरी तरह से चौपट हो चुकी हैं, ऐसे में Romdhane के लिए यह जिम्मेदारी आसान नहीं होगी।

अरब देशों में महिलाओं की स्थिति क्या सच में बुरी है?

दुनिया के विकसित देशों के साथ कदमताल करने के लिए कुछ अरब देश महिलाओं के लिए अवसर के दरवाजे खोज रहे हैं। हालांकि इसके पीछे इन देशों का स्वार्थ भी छिपा हुआ है। कर्मचारियों और मजदूरों को लेकर अरब देश आत्मनिर्भर होना चाहते हैं। सऊदी अरब ने 2030 तक 30 फीसदी महिला कर्मचारियों का लक्ष्य रखा है ताकि इसके लिए उन्हें प्रवासियों पर निर्भर न होना पड़े। कुवैत में महिला कर्मचारियों की संख्या पुरुषों से ज्यादा है। वहीं खाड़ी में उच्च शिक्षा में महिलाएं की आबादी पुरुषों से अधिक है। महिलाओं की बेहतर स्थिति को लेकर जिस अरब की हम बात कर रहे हैं उसका मतलब खाड़ी क्षेत्र (GCC) से है। जहां महिलाएं सरकार में शामिल होती हैं और राजनीतिक फैसले लेती हैं।

महिलाओं की दूसरी तस्वीर जो मिडिल ईस्ट से नजर आती है वह इससे काफी अलग है। आज भी महिलाएं यहां कई तरह के सामाजिक और कानूनी प्रतिबंधों का सामना कर रही हैं। The Conversation की एक रिपोर्ट में पाया गया कि आज भी वे घरों पर ‘पारंपरिक महिलाओं’ की भूमिकाएं निभाने की मजबूर हैं। खाड़ी अरब में महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए 1930 में हुई तेल की खोज को काफी हद तक जिम्मेदार माना जा सकता है। पश्चिमी देशों की यूएई और सऊदी अरब जैसे मुल्कों में दिलचस्पी बढ़ी और उन पर दबाव बनाया गया कि वे अपने नियमों व कानूनों का आधुनिकीकरण करें। अंतरराष्ट्रीय व्यापार और ग्लोबल छवि के दवाब में आकर खाड़ी देशों ने सुधार किया लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर और चरमपंथियों के कब्जे वाले अरब देश पीछे रह गए।

सऊदी अरब में महिलाओं ने मांगे अपने अधिकार

GCC देशों और मिडिल ईस्ट देशों में महिलाओं की स्थिति में जमीन और आसमान का अंतर है जिसका प्रमुख कारण व्यापार, विदेशी निवेश और पर्यटन को माना जा सकता है। GCC के भीतर भी अलग-अलग देशों में महिलाओं को अलग-अलग अधिकार हासिल हैं जिसका निर्धारण इन देशों की सरकारें करती हैं। यूएई की तुलना में सऊदी अरब में महिलाओं को कम अधिकार हासिल हैं। हाल ही में महिलाओं ने जब अपने हक के लिए आवाज उठाई तो सऊदी अरब में उन्होंने गाड़ी चलाने का अधिकार दिया गया। 2018 के बाद से महिलाएं बिना किसी पुरुष संरक्षण के गाड़ी चला सकती हैं। महिलाओं को अकेले घूमने और खुद पासपोर्ट के लिए आवेदन करने की अनुमति भी दी गई है। महिलाओं ने ये अधिकार कुछ सालों पहले ही हासिल किए हैं क्योंकि सरकार अपने लक्ष्य 2030 को पूरा करना चाहती हैं और पर्यटन को बढ़ावा देना चाहती है।

2015 में मिला वोटिंग का अधिकार

भारत या अन्य लोकतांत्रिक देशों की तरह सऊदी अरब में मूलभूत अधिकार महिलाओं को जन्म से नहीं मिले। इसके लिए उन्हें लंबा संघर्ष करना पड़ा। 1961 में लड़कियों के लिए पहला सरकारी स्कूल खुला और 1970 में पहली यूनिवर्सिटी। 2005 में देश ने जबरन विवाद पर रोक लगाई और 2009 में पहली सरकारी मंत्री की नियुक्ति की गई। साल 2012 में ओलंपिक की टीम में महिला एथलीट्स को जगह दी गई और वे बिना स्कार्फ के मैदान पर उतरीं। 2013 में उन्हें साइकिल चलाने के लिए मंजूरी मिली लेकिन इस दौरान उनके साथ किसी पुरुष का होना और पूरे कपड़े पहने होना जरूरी था। सऊदी अरब में महिलाओं को वोट डालने का अधिकार भी 2015 में मिला था। ये बदलाव महिलाओं के संघर्ष और अरब देशों के विकास यात्रा को दिखाते हैं क्योंकि पर्यटन या इमारतें किसी देश के विकास का दम तब तक नहीं भर सकती जब तक वहां की महिलाएं स्वतंत्र न हों।

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