बिहार में किये गए एक हालिया अध्ययन में पाया गया है कि आर्सेनिक (arsenic) न केवल भूजल को बल्कि खाद्य श्रृंखला को भी दूषित करता है। यह शोध ‘नेचर एंड नरचर इन आर्सेनिक इन्ड्यूस्ड टॉक्सिसिटी ऑफ बिहार’ परियोजना का एक हिस्सा था, जिसे यूनाइटेड किंगडम में ब्रिटिश काउंसिल और भारत में ‘विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग’ द्वारा संयुक्त रूप से वित्तपोषित किया गया था।
प्रमुख बिंदु
- खाद्य श्रृंखला में आर्सेनिक की उपस्थिति दर्ज की गई है- मुख्य रूप से चावल, गेहूं और आलू में।
- भूजल में आर्सेनिक संदूषण देश भर के कई हिस्सों में गंभीर चिंता का विषय रहा है।
- भूजल में आर्सेनिक मौजूद है और इसका उपयोग किसानों द्वारा सिंचाई के लिए बड़े पैमाने पर किया जाता है। अतः खाद्य श्रृंखला में इसकी उपस्थिति का भी यही कारण है।
खाद्य बनाम जल संदूषण
शोध के मुताबिक पीने योग्य जल की तुलना में भोजन में आर्सेनिक की मात्रा अधिक पाई गई, वहीं पीने योग्य जल में आर्सेनिक का मौजूदा स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के 10 माइक्रोग्राम प्रति लीटर (μg/L) के अंतिम गाइड मूल्य से भी ऊपर है।
कच्चे चावल की तुलना में पके चावल में इसकी सांद्रता काफी अधिक देखी गई।
आर्सेनिक क्या है
- यह एक गंधहीन और स्वादहीन उपधातु (Metalloid) है जो व्यापक रूप से पृथ्वी की भूपर्पटी पर विस्तृत है।
- यह अनेक देशों की भू-पर्पटी और भूजल में उच्च मात्रा में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। यह अपने अकार्बनिक रूप में अत्यधिक विषैला होता है।
- यह पीने के पानी के अलावा आर्सेनिक से दूषित भोजन को खाने से मानव शरीर में प्रवेश कर सकता है।
- आर्सेनिकोसिस, आर्सेनिक विषाक्तता के लिए चिकित्सा के क्षेत्र में उपयोग किया जाने वाला एक शब्द है, जो शरीर में बड़ी मात्रा में आर्सेनिक के जमा होने के कारण होता है।
- यह आवश्यक एंज़ाइमों के निषेध के माध्यम से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, जो विभिन्न प्रकार की विकलांगता के साथ ही अंततः मृत्यु का कारण बन सकता है।
- पीने के पानी और भोजन के माध्यम से आर्सेनिक के लंबे समय तक संपर्क में रहने से कैंसर और त्वचा पर घाव हो सकते हैं। इसे हृदय रोग और मधुमेह से भी संबद्ध माना जाता है।
- गर्भाशय और बाल्यावस्था में जोखिम को संज्ञानात्मक विकास पर नकारात्मक प्रभावों तथा इसके कारण युवाओं में बढ़ती मृत्यु दर से जोड़ा गया है।
- उठाए गए कदम: वर्ष 2030 सतत् विकास के लिए एजेंडा का “सुरक्षित रूप से प्रबंधित पेयजल सेवाओं” नामक संकेतक आबादी तक ऐसे पीने के पानी को पहुंचाने का प्रावधान करता है जो आर्सेनिक सहित मल संदूषण और प्राथमिकता वाले रासायनिक संदूषकों से मुक्त हो।
- जल जीवन मिशन की परिकल्पना ग्रामीण भारत के सभी घरों में वर्ष 2024 तक व्यक्तिगत घरेलू नल कनेक्शन के माध्यम से सुरक्षित और पर्याप्त पेयजल उपलब्ध कराने के लिए की गई है।
हाल ही में जल जीवन मिशन (शहरी) भी शुरू किया गया है।
आगे क्या होगा
- पीने के पानी के साथ-साथ सिंचाई के पानी की गुणवत्ता की निगरानी करने की तत्काल आवश्यकता है।
- आवश्यकता इस बात की है कि योजना और रखरखाव कार्य में जनता को शामिल करके इसके शमन को सफल बनाया जाए। साथ ही राज्यों को आवश्यक प्रोत्साहन भी दिया जाए।
- उपचारात्मक उपायों में विभिन्न प्रकार के विकल्प शामिल हैं, जैसे- भूजल से आर्सेनिक निकालने के बाद वैकल्पिक जलभृत की खोज करना, जलभृत के अंतः स्तर को कम करना, कृत्रिम पुनर्भरण द्वारा दूषित पदार्थों को कम करना, पीने योग्य पानी उपलब्ध कराना आदि।
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