12 सितंबर को सारागढ़ी के युद्ध की 124वीं वर्षगांठ थी। सारागढ़ी के युद्ध (Battle of Saragarhi) को दुनिया के सैन्य इतिहास में सबसे बेहतरीन लास्ट स्टैंड में से एक माना जाता है।
प्रमुख बिंदु
- सारागढ़ी फोर्ट लॉकहार्ट और फोर्ट गुलिस्तान के बीच संचार टावर था। बीहड़ उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत (NWFP) में दो किले, जो अब पाकिस्तान में हैं, महाराजा रणजीत सिंह द्वारा बनाए गए थे, लेकिन अंग्रेज़ों ने उनका नाम बदल दिया।
- सारागढ़ी ने उन दो महत्त्वपूर्ण किलों को जोड़ने में मदद की जहां NWFP के बीहड़ इलाके में बड़ी संख्या में ब्रिटिश सैनिक रहते थे।
- यहां 21 सैनिकों ने 8,000 से अधिक अफरीदी और ओरकजई आदिवासियों के खिलाफ मोर्चा संभाला था, लेकिन उन्होंने सात घंटे तक किले पर कब्ज़ा नहीं करने दिया।
- हालांकि सारागढ़ी में आमतौर पर 40 सैनिकों की एक पल्टन (Platoon) होती थी।
- उस दिन यहां पर 36वीं सिख रेजिमेंट (भारतीय सेना में अब चौथे सिख) के केवल 21 सैनिकों और एक गैर-लड़ाकू पश्तून ‘दाद’ द्वारा यह युद्ध लड़ा गया, जबकि पश्तून सेना में असैन्य कार्य किया करते थे।
- हालांकि 36वें सिख के हवलदार ईशर सिंह के नेतृत्व में इन सिख सैनिकों ने विद्रोहियों की भारी सेना के खिलाफ अंतिम सांस तक लड़ाई लड़ी, जिसमें 200 जनजातीय लोगों की मौत हो गई और 600 घायल हो गए।
- वर्ष 2017 में पंजाब सरकार ने सारागढ़ी दिवस पर 12 सितंबर को अवकाश की घोषणा की।
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