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जानिए, क्यों चर्चा में है तमिलनाडु की थमिराबरानी सभ्यता

themirabrani civilization

तमिलनाडु की थमिराबरानी सभ्यता 3,200 साल पुरानी है

तमिलनाडु के थूथुकुडी ज़िले के शिवकलाई में पुरातात्त्विक खुदाई से प्राप्त कार्बनिक पदार्थों पर की गई कार्बन डेटिंग से पता चला है कि थमिराबरानी सभ्यता (Thamirabarani civilization) कम-से-कम 3,200 साल पुरानी है।

कार्बन डेटिंग

कार्बन के समस्थानिक कार्बन-12 और कार्बन-14 के सापेक्ष अनुपात से कार्बनिक पदार्थ की आयु या तिथि के निर्धारण को कार्बन डेटिंग कहते हैं।

थमिराबरानी नदी

तमिलनाडु की सबसे छोटी नदी का उद्गम थामिराबरानी अंबासमुद्रम तालुके में पश्चिमी घाट की पोथिगई पहाड़ियों से होता है, यह तिरुनेलवेली और थूथुकुडी ज़िलों से होकर बहती है तथा कोरकाई (तिरुनेलवेली ज़िले) में मन्नार की खाड़ी (बंगाल की खाड़ी) में गिरती है।

महत्व

  • यह इस बात का प्रमाण दे सकता है कि दक्षिण भारत में 3,200 साल पहले सिंधु घाटी सभ्यता के बाद एक शहरी सभ्यता [पोरुनाई नदी (थामिराबरानी) सभ्यता] थी।
  • इसके अतिरिक्त तमिल मूल की खोज के लिये अन्य राज्यों और देशों में पुरातात्त्विक उत्खनन किया जाएगा।
  • पहले चरण में चेर साम्राज्य की प्राचीनता और संस्कृति को स्थापित करने के लिए केरल में मुज़िरिस के प्राचीन बंदरगाह, जिसे अब पट्टनम के नाम से जाना जाता है, पर अध्ययन किया जाएगा।
  • मिस्र में कुसीर अल-कादिम और पर्निका अनेके (Quseir al-Qadim and Pernica Anekke), जो कभी रोमन साम्राज्य का हिस्सा थे तथा ओमान में खोर रोरी (Khor Rori) में अनुसंधान कार्य किया जाएगा, इनके साथ तमिलों के व्यापारिक संबंध थे।
  • इंडोनेशिया, थाईलैंड, मलेशिया और वियतनाम जैसे दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में भी अध्ययन किया जाएगा, जहाँ राजा राजेंद्र चोल ने वर्चस्व स्थापित किया था।
  • तमिल भारत के तीन शासक घरानों, पांड्यों, चेरों और चोलों ने दक्षिणी भारत एवं श्रीलंका पर वर्चस्व के लिये लड़ाई लड़ी। इन राजवंशों ने भारतीय उपमहाद्वीप पर प्रारंभिक साहित्य को बढ़ावा दिया तथा महत्त्वपूर्ण हिंदू मंदिरों का निर्माण किया।
  • संगम साहित्य, जो छह शताब्दियों (3rd BCE – 3rd CE) की अवधि में लिखा गया था, विभिन्न चोल, चेर और पांड्य राजाओं के संदर्भ है।

अन्य बातें

  • हाल ही में तमिलनाडु के कीझादी (Keezhadi) में खुदाई के दौरान चाँदी के पंच के रूप में चिह्नित एक सिक्का मिला, जिसमें सूर्य, चंद्रमा, टॉरिन और अन्य ज्यामितीय पैटर्न के प्रतीक थे।
  • इस पर किये गए अध्ययनों से पता चलता है कि यह सिक्का चौथी शताब्दी ईसा पूर्व का है, जो प्राचीन मौर्य साम्राज्य (321-185 ईसा पूर्व) के समय से पहले का है।
  • तमिलनाडु में कोडुमानल, कीलादी, कोरकाई, शिवकलाई जैसे कई स्थानों पर पुरातात्त्विक खुदाई की जा रही है।
    कलाकृतियों की कार्बन डेटिंग के अनुसार, कीलादी सभ्यता ईसा पूर्व छठी शताब्दी की है।

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