हाल ही में केंद्र सरकार ने नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (NSCN-K) निकी ग्रुप के साथ एक वर्ष की अवधि के लिए युद्धविराम समझौता किया है। यह पहल नगा शांति प्रक्रिया के लिए एक महत्त्वपूर्ण कदम है। साथ ही भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘उग्रवाद मुक्त, समृद्ध उत्तर पूर्व’ के दृष्टिकोण के अनुरूप है।
इसमें असम के पाँच विद्रोही समूहों, केंद्र और असम की राज्य सरकार के बीच एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।
ब्रू समझौते के तहत त्रिपुरा में 6959 ब्रू परिवारों के लिये वित्तीय पैकेज सहित स्थायी बंदोबस्त पर भारत सरकार, त्रिपुरा और मिज़ोरम के बीच ब्रू प्रवासियों के प्रतिनिधियों के साथ सहमति व्यक्त की गई है।
2020 में भारत सरकार, असम सरकार और बोडो समूहों के प्रतिनिधियों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसमें असम में बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन (Bodoland Territorial Region-BTR) को अधिक स्वायत्तता प्रदान की गई। साथ ही NSCN(NK), NSCN (R), और NSCN (K)-खांगो, NSCN (IM) जैसे नगा विद्रोह में शामिल विभिन्न सैन्य संगठनों के साथ शांति समझौता।
राष्ट्रीय स्तर के संघर्ष : इसमें एक अलग राष्ट्र के रूप में एक विशिष्ट ‘मातृभूमि’ की अवधारणा को शामिल है।
नगालैंड : नगा विद्रोह, स्वतंत्रता की मांग के साथ शुरू हुआ। यद्यपि स्वतंत्रता की मांग काफी हद तक कम हो गई है, लेकिन ‘ग्रेटर नगालैंड’ या ‘नगालिम’ की मांग सहित अंतिम राजनीतिक समझौते का मुद्दा अभी भी जीवंत बना हुआ है।
जातीय संघर्ष : इसमें प्रभावशाली जनजातीय समूह की राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रभाविता के खिलाफ संख्यात्मक रूप से छोटे और कम प्रभावशाली जनजातीय समूहों के दावे को शामिल करना शामिल है।
त्रिपुरा : वर्ष 1947 के बाद से राज्य की जनसांख्यिकीय रूपरेखा में काफी परिवर्तन हुआ है यह परिवर्तन मुख्य रूप से तब हुआ जब नवगठित पूर्वी पाकिस्तान से बड़े पैमाने पर लोगों का पलायन हुआ और इसने त्रिपुरा को आदिवासी बहुमत वाले क्षेत्र से बंगाली भाषी लोगों के बहुमत वाले क्षेत्र में बदल दिया। आदिवासियों को मामूली कीमतों पर उनकी कृषि भूमि से वंचित कर दिया गया तथा उन्हें वन भूमियों की ओर भेज दिया गया। इसके परिणामस्वरुप तनाव व्यापक हिंसा और उग्रवाद की स्थिति पैदा हुई।
उप-क्षेत्रीय संघर्ष : उप-क्षेत्रीय संघर्ष में ऐसे आंदोलनों को शामिल किया जाता है जो उप-क्षेत्रीय आकांक्षाओं को मान्यता देने को प्रेरित करते हैं और प्रायः राज्य सरकारों या यहाँ तक कि स्वायत्त परिषदों के साथ सीधे संघर्ष में व्याप्त हो जाते हैं।
मिज़ोरम : हिंसक विद्रोह के अपने इतिहास और उसके बाद शांति की ओर लौटने वाला यह राज्य अन्य सभी हिंसा प्रभावित राज्यों के लिए एक उदाहरण है। वर्ष 1986 में केंद्र सरकार और मिज़ो नेशनल फ्रंट के बीच ‘मिज़ो शांति समझौते’ और अगले वर्ष राज्य का दर्जा दिये जाने के बाद मिज़ोरम में पूर्ण शांति और सद्भाव कायम है। इसके अलावा मिज़ोरम के गठन के समय से ही असम और मिज़ोरम के बीच सीमा विवाद व्याप्त है।
अन्य कारण : प्रायोजित आतंकवाद, सीमापार से प्रवासियों की निरंतर आवाजाही के परिणामस्वरूप उत्पन्न संघर्ष, महत्त्वपूर्ण आर्थिक संसाधनों पर नियंत्रण को और मज़बूत करने के उद्देश्य के परिणामत : आपराधिक स्थितियां बन गई हैं।
असम : राज्य में प्रमुख जातीय संघर्ष ‘विदेशियों’ की आवाजाही के कारण है यहाँ विदेशियों से तात्पर्य सीमा पार ( बांग्लादेश) से असमिया से काफी अलग भाषा और संस्कृति वाले लोगों से है। असम में हालिया तनाव नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर की बहस से उत्पन्न हुआ है।