Pollen Calendar : ‘पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च’ (PGIMER) और ‘पंजाब विश्वविद्यालय’ ने चंडीगढ़ के लिए एक ‘पराग कैलेंडर’ (PC) विकसित किया है, जो भारत के किसी शहर के लिए अपनी तरह का पहला प्रयास है। पराग कैलेंडर को लगभग दो वर्षों तक हवाई/वायुजनित पराग और इसके मौसमी बदलावों का अध्ययन करने के बाद बनाया गया था।
पराग कैलेंडर (PC)
- पराग कैलेंडर (PC) एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र में मौजूद हवाई/वायुजनित पराग के समय की गतिशीलता का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे एक ही चित्र में पूरे वर्ष में मौजूद विभिन्न वायुजनित परागों के बारे में आसानी से सुलभ दृश्य विवरण प्राप्त करते हैं।
- ‘पराग कैलेंडर’ प्रायः स्थान-विशिष्ट होते हैं, जिसमें पराग की सांद्रता स्थानीय रूप से वितरित वनस्पतियों से निकटता से संबंधित होती है।
- यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और अमेरिका द्वारा ‘एलर्जिक राइनाइटिस’/’हे फीवर’ को रोकने तथा निदान करने एवं पराग के मौसम के समय एवं गंभीरता का अनुमान लगाने के लिये क्षेत्रीय पराग कैलेंडर का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जा रहा है।
पराग
- परागकण नर जैविक संरचनाएँ हैं, जिनका प्राथमिक दायित्व ‘गर्भाधान’ होता है, लेकिन जब मनुष्यों द्वारा सांस ली जाती है, तो वे श्वसन प्रणाली पर दबाव डाल सकते हैं और एलर्जी का कारण बन सकते हैं।
- ‘पराग’ पौधों द्वारा छोड़ा जाता है, जिससे लाखों लोग हे फीवर, परागण और एलर्जिक राइनाइटिस से पीड़ित होते हैं।
- भारत में लगभग 20-30% आबादी एलर्जिक राइनाइटिस या हे फीवर से पीड़ित है और लगभग 15% लोग अस्थमा से पीड़ित हैं।
- PGIMER के एक अध्ययन के अनुसार, वसंत और शरद ऋतु का मौसम वायुजनित पराग के लिये काफी विशिष्ट होता है, जब फेनोलॉजिकल एवं मौसम संबंधी मापदंड पराग कणों के विकास, फैलाव और संचरण के लिये अनुकूल होते हैं।
अन्य समाधान
- ‘द्विलिंगी पुष्प’ (एक ही पुष्प पर नर और मादा पुष्प) लगाना। हिबिस्कस, लिली और हॉली ऐसे पौधों के उदाहरण हैं।
- ऐसे पेड़/झाड़ियां लगाना जो बहुत कम पराग छोड़ते हैं। ताड़, बिछुआ, सफेदा, शहतूत, काॅन्ग्रेस ग्रास, चीड़ जैसे पेड़ों में पराग का प्रकोप अधिक होता है।
- गैर-एलर्जी या एंटोमोफिलस पौधों की प्रजातियां जैसे- गुलाब, चमेली, साल्विया, बोगनविलिया, रात की रानी और सूरजमुखी आदि।
यह भी पढ़ें
जानें, क्या है हरे कृष्ण आंदोलन और इस्कॉन