हस्तशिल्प और हथकरघा निदेशालय, कश्मीर ने “पुरानी तकनीकों को बनाए रखने के लिए” भौगोलिक संकेत (GI)-प्रमाणित हाथ से बने पश्मीना शॉल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की घोषणा की है। इससे पहले कश्मीर केसर को जीआई टैग का दर्जा प्राप्त हो चुका है।
पश्मीना शॉल के बारे में
- शॉल दो तकनीकों द्वारा निर्मित होते हैं, करघा से बुने हुए (Loom Woven) या कनी शॉल (Kani Shawls) और सुई कढ़ाई (Needle Embroidered) या सोज़नी शॉल (Sozni Shawls)।
- शॉल बनाने में प्रयोग होने वाला मूल कपड़ा तीन प्रकार का होता है – शाह तुश (Shah Tush), पश्मीना (Pashmina) और रफ़ल (Raffal)।
- शाह तुश (ऊन का राजा) हाथ की एक अंँगूठी से निकल जाता है और इसे रिंग शॉल (Ring shawl) के नाम से भी जाना जाता है। इसे हिमालय के जंगलों में 14000 फीट से अधिक की ऊंँचाई पर रहने वाले एक दुर्लभ तिब्बती मृग से प्राप्त किया जाता है।
- वैश्विक स्तर पर पश्मीना को कश्मीरी ऊन के रूप में जाना जाता है, यह 12000 से 14000 फीट की ऊंँचाई पर पाई जाने वाली एक विशेष बकरी (Capra hircus) से प्राप्त किया जाता है।
- रैफल को मेरिनो वूल टॉप से काता जाता है और यह एक लोकप्रिय प्रकार का शॉल है।
भौगोलिक संकेत (GI) प्रमाणन
- GI एक संकेतक है जिसका उपयोग एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में उत्पन्न होने वाली विशेष विशेषताओं वाले सामानों की पहचान करने हेतु किया जाता है।
- इसका उपयोग कृषि, प्राकृतिक और निर्मित वस्तुओं के लिए किया जाता है।
- ‘माल भौगोलिक संकेतक (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999’ भारत में माल के संबंध में भौगोलिक संकेतों के पंजीकरण एवं अत्यधिक सुरक्षा प्रदान करने का प्रयास करता है।
- यह विश्व व्यापार संगठन के बौद्धिक संपदा अधिकार के व्यापार संबंधी पहलुओं (TRIPS) का भी एक हिस्सा है।
प्रशासित
इसे भौगोलिक संकेतकों के रजिस्ट्रार पेटेंट, डिज़ाइन और ट्रेडमार्क महानियंत्रक द्वारा प्रसाशित किया जाता है।
भौगोलिक संकेत रजिस्ट्री (Geographical Indications Registry) चेन्नई में स्थित है।
पंजीकरण की वैधता
भौगोलिक संकेत का पंजीकरण 10 वर्षों की अवधि के लिए वैध होता है।
इसे समय-समय पर 10-10 वर्षों की अतिरिक्त अवधि के लिये नवीकृत (Renewed) किया जा सकता है।