केंद्र सरकार ने लोकसभा एवं राज्यसभा में 127वां संविधान (संशोधन) विधेयक, 2021 पेश किया। जिसे दोनों सदनों ने अपनी सहमति दे दी है। यह विधेयक राज्य की अपनी ओबीसी सूची बनाने की शक्ति को बहाल करने का प्रयास करता है।
संवैधानिक प्रावधान
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 (4), 15 (5), और 16 (4) राज्य सरकार को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की सूची घोषित करने और उनकी पहचान करने की शक्ति प्रदान करते हैं। केंद्र और राज्य सरकारें एक अभ्यास के रूप में अलग-अलग ओबीसी सूची तैयार करती हैं।
127वें संविधान संशोधन विधेयक के बारे में
इस बदलाव की जरूरत क्या थी?
सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल 5 मई को एक आदेश दिया था। इस आदेश में कहा गया कि राज्यों को सामाजिक-शैक्षणिक रूप से पिछड़े लोगों को नौकरी और एडमिशन में आरक्षण देने का अधिकार नहीं है। इसके लिए जजों ने संविधान के 102वें संशोधन का हवाला दिया। इसी फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में मराठों को ओबीसी में शामिल कर आरक्षण देने के फैसले पर भी रोक लगा दी थी। 2018 में हुए इस 102वें संविधान संशोधन में नेशनल कमीशन फॉर बैकवर्ड क्लासेज की शक्तियों और जिम्मेदारियों को बताया गया था। इसके साथ ही ये 342A संसद को पिछड़ी जातियों की लिस्ट बनाने का अधिकार देता है। इस संशोधन के बाद विपक्षी पार्टियां ये आरोप लगाती थीं कि केंद्र संघीय ढांचे को बिगाड़ रहा है। 5 मई को आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का केंद्र ने भी विरोध किया। इसी के बाद 2018 के संविधान संशोधन में बदलाव की कवायद शुरू हुई।
नए बिल में क्या है?
ये बिल संविधान के 102वें संशोधन के कुछ प्रावधानों को स्पष्ट करने के लिए लाया गया है। इस बिल के पास होने के बाद एक बार फिर राज्यों को पिछड़ी जातियों की लिस्टिंग का अधिकार मिल गया है। वैसे भी 1993 से ही केंद्र और राज्य/केंद्रशासित प्रदेश दोनों ही OBC की अलग-अलग लिस्ट बनाते रहे हैं। 2018 के संविधान संशोधन के बाद ऐसा नहीं हो पा रहा था। इस बिल के पास होने के बाद दोबारा से पुरानी व्यवस्था लागू हो जाएगी। इसके लिए संविधान के आर्टिकल 342A में संशोधन किया गया है। इसके साथ ही आर्टिकल 338B और 366 में भी संशोधन हुए हैं।
बिल पास होने से क्या बदलेगा?
इस बिल के पास होते ही राज्य सरकारें अपने राज्य के हिसाब से अलग-अलग जातियों को OBC कोटे में डाल सकेंगी। इससे हरियाणा में जाट, राजस्थान में गुर्जर, महाराष्ट्र में मराठा, गुजरात में पटेल, कर्नाटक में लिंगायत आरक्षण का रास्ता साफ हो सकता है। ये जातियां लंबे समय से आरक्षण की मांग कर रही हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट इंदिरा साहनी केस का हवाला देकर इन पर रोक लगाता रहा है।
तो क्या अब सुप्रीम कोर्ट राज्य सरकारों के आरक्षण के फैसले पर रोक नहीं लगा सकेगा?
बिल पास होने से राज्यों को नई जातियों को OBC में शामिल करने का आधिकार मिल जाएगा, लेकिन आरक्षण की सीमा अभी भी 50% ही है। इंदिरा साहनी केस के फैसले के मुताबिक अगर कोई 50% की सीमा के बाहर जाकर आरक्षण देता है तो सुप्रीम कोर्ट उस पर रोक लगा सकता है। इसी वजह से कई राज्य इस सीमा को खत्म करने की मांग कर रहे हैं।