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भारत की पहली ‘Monk Fruit’ की खेती हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में शुरू की गयी

हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में चीन से लाये गये ‘monk fruit’ की खेती शुरू हो गई है। इस फल को हिमाचल प्रदेश में फील्ड परीक्षण के लिए पालमपुर स्थित वैज्ञानिक अनुसंधान और औद्योगिक प्रौद्योगिकी परिषद-हिमालयी जैव-संसाधन प्रौद्योगिकी संस्थान (CSIR-IHBT) द्वारा पेश किया गया था।

 

ये हैं खास बातें

  • ‘Monk fruit’ अपने गुणों के लिए गैर-कैलोरी प्राकृतिक स्वीटनर (non-caloric natural sweetener) के रूप में जाना जाता है।
  • CSIR-IHBT द्वारा चीन से बीज आयात करने और इसे घर में उगाने के तीन साल बाद फील्ड परीक्षण शुरू हो गया है।
  • रायसन (Raison) गांव के एक किसान के खेत में परीक्षण के लिए इन फलों के 50 पौधे लगाए गए और किसान के साथ एक ‘सामग्री हस्तांतरण समझौते’ पर हस्ताक्षर किए गए हैं।
  • नई फसल से 3 लाख रुपये से 3.5 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर के बीच आर्थिक लाभ होने का अनुमान है।
  • क्षेत्र की कृषि-जलवायु परिस्थितियों में ‘monk fruit’ के पूर्ण जीवन-चक्र को आकर्षित करने के लिए फूलों के पैटर्न, परागण व्यवहार और फल सेटिंग समय का भी डॉक्यूमेंटेशन किया गया था।

‘Monk Fruit’ की खेती के लिए शर्तें

‘Monk fruit’ “एक बारहमासी फसल” है। इसका जीवनकाल चार से पांच साल का होता है। इस फसल पर अंकुरण के आठ से नौ महीने बाद फल लगना शुरू हो जाता है। यह 16-20 डिग्री सेल्सियस के वार्षिक औसत तापमान और आर्द्र परिस्थितियों वाले पहाड़ी क्षेत्र में अच्छे से उगता है।

पृष्ठभूमि

‘Monk fruit’ ने इसका नाम बौद्ध भिक्षुओं से लिया जिन्होंने पहली बार इसका इस्तेमाल किया था।

बीज अंकुरण दर

‘Monk fruit’ की बीज अंकुरण दर धीमी और कम होती है। इस प्रकार, अंकुरण दर बढ़ाने और अंकुरण समय को कम करने के लिए CSIR-IHBT द्वारा बीज अंकुरण तकनीक विकसित की गई है। इस संस्थान ने रोपण विधि और मानकीकृत रोपण समय भी तैयार किया है।

‘Monk fruit’ के बारे में

‘Monk fruit’ (siraitia grosvenorii), अपने तीव्र मीठे स्वाद के लिए जाना जाता है। इसका उपयोग गैर-कैलोरी प्राकृतिक स्वीटनर के रूप में किया जाता है। इसका मीठा स्वाद कुकुरबिटेन-प्रकार ट्राइटरपीन ग्लाइकोसाइड्स (cucurbitane-type triterpene glycosides) के समूह की सामग्री के कारण होता है जिसे मोग्रोसाइड (mogrosides) कहा जाता है।

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