देश में ऑक्सीजन संकट (Oxygen Crisis) गहराता जा रहा है। देश के कई राज्यों के हॉस्पिटल्स ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहे हैं। ऐसे में क्रायोजेनिक टैंकर (Cryogenic Tanker) से ऑक्सीजन की चौबीसों घंटे सप्लाई की जा रही है।
क्रायोजेनिक शब्द ग्रीक, लैटिन और अंग्रेजी भाषाओं के मेल से बना है। क्रायोजेनिक का मतलब है बेहद ठंडा रखने वाला। आवागमन के लिए इन टैंकों को स्थायी या अस्थायी रूप से ट्रकों में फिट किया जाता है। लिक्विड ऑक्सीजन, लिक्विड हाइड्रोजन के अलावा नाइट्रोजन और हीलियम के ट्रांसपोर्ट के लिए भी क्रायोजेनिक टैंक की ही जरूरत होती है।
क्रायोजेनिक टैंक दो तरह की परत से बने होते हैं। टैंक के अंदर की परत को इनर वेसल कहा जाता है, जो स्टेनलेस स्टील या इसी तरह की अन्य पदार्थ से बनाई जाती है। इनर वेसल की इसी खासियत के चलते वह ऑक्सीजन को जरूरी ठंडक (Cold) पहुंचाती रहती है। इनर वेसल को सुरक्षित रखने का काम आउटर वेसल करती है, जो कार्बन स्टील की बनी होती है। इनर और आउटर वेसल के बीच 3-4 इंच की गैप होता है, जिसे वैक्यूम लेयर कहा जाता है। इस लेयर का महत्वपूर्ण काम यही है कि यह बाहर की गर्मी या गैसों के दबाव को टैंक के अंदर पहुंचने से रोकती है। इस तरह यही वैक्यूम लेयर इनर वेसल को टेंपरेचर मैनटेन करने में मदद करती है।
ऑक्सीजन को टैंक के अंदर माइनस 185 से माइनस 93 के टेंपरेचर में रखा जाता है। इस टैंक के जरिए 20 टन ऑक्सीजन का ट्रांसपोर्टेशन (Transportation) हो सकता है। एक क्रायोजेनिक टैंक तैयार होने में 25-40 लाख रुपए तक का खर्च आता है।
हॉस्पिटल में ऑक्सीजन स्टोरेज के लिए जो टैंक बनाए जाते हैं, वे स्थायी टैंक (Permanent tank) कहलाते हैं। अस्पताल के इन्हीं स्टेशनरी टैंक तक ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए मोबाइल टैंक (Mobile Tank) की जरूरत होती है। मोबाइल टैंकर खतरनाक होते हैं जिसके चलते इनके निर्माण के लिए हर साल रजिस्ट्रेशन के अलावा केंद्र और राज्य सरकारों के कई मंत्रालयों से सेफ्टी सर्टिफिकेट लेना अनिवार्य होता है।
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