ऑक्सीमीटर एक ऐसा पोर्टेबल यंत्र है जो खून में ऑक्सीजन की मात्रा बताती रहती है। इससे ऑक्सीजन की कमी के हालात में समय रहते डॉक्टरी मदद मिल सकती है। खबरों के अनुसार, ऑक्सीमीटर डिवाइस खरीदने की बजाए बहुत से लोग मोबाइल पर ऑक्सीमीटर डाउनलोड कर रहे हैं। ये फेक हो सकता है, और ये भी हो सकता है कि इसके इस्तेमाल से आपका सारा जरूरी डाटा गलत हाथों तक पहुंच जाए।
देखने में ये कपड़ों पर लगाने वाली क्लिप की तरह होता है, जिसे अंगुली में फंसाया जाता है, लेकिन इससे पहले इसे ऑन करते हैं। चूंकि ये डिस्प्ले मशीन होती है तो तुरंत ही इसकी स्क्रीन पर ऑक्सीजन का स्तर दिखने लगता है। साथ में मरीज की पल्स यानी नब्ज का स्टेटस भी दिखता है। कोरोना के मरीज कुछेक घंटों पर लगातार ये लेते रहें, तो उन्हें पता रहता है कि उनके लंग्स ठीक तरह से काम कर रहे हैं या नहीं।
कोरोना संक्रमित लेकिन इसके अलावा स्वस्थ व्यक्ति के रक्त में ऑक्सीजन का सैचुरेशन लेवल 95 से 100 फीसदी के बीच होता है। 95 फीसदी से कम ऑक्सीजन लेवल इस बात का संकेत है कि उसके फेफड़ों में परेशानी हो रही है। ऑक्सीजन का स्तर अगर 94 से नीचे जाने लगे तो सचेत हो जाना चाहिए और अगर ये स्तर 93 या इससे नीचे हो जाए तो मरीज को अस्पताल ले जाना चाहिए क्योंकि ये संकेत है कि उसके शरीर की 8 फीसदी तक कोशिकाएं ऑक्सीजन का प्रवाह नहीं कर पा रही हैं।
साल 2020 में ही सरकार ने ऑक्सीमीटर मोबाइल एप को लेकर अलर्ट जारी किया था। ये महामारी का पहला दौर था, जब पहली बार ही लोगों को ऑक्सीमीटर की जरूरत महसूस हुई। केंद्र सरकार की साइबर यूनिट ने ट्वीट करते हुए इसे लेकर एडवायजरी जारी की, जिसमें इसके खतरों को लेकर अलर्ट किया गया।
एडवायजरी में कहा गया कि यूजर्स को अज्ञात यूआरएल से ऑक्सीमीटर एप डाउनलोड नहीं करना चाहिए। ये एप भले ही ऑक्सजीन स्तर की जांच का दावा करें लेकिन ये नकली हो सकते हैं। इसे डाउनलोड करते ही यूजर की निजी जानकारी समेत, बायोमैट्रिक डिटेल तक चोरी हो सकती है। साइबर सेल ने ये बात कई शिकायतों के आधार पर कही थी।
बायोमैट्रिक डिटेल, जिसमें अंगुलियों या अंगूठे का प्रिंट होता है, ये हमारी सबसे खुफिया जानकारियों में से है। इसके चोरी जाने और गलत हाथों में पड़ने पर इसका दुरुपयोग न केवल बैंक से पैसे उड़ाने, बल्कि हमारी पहचान के गलत इस्तेमाल में भी हो सकता है।
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