प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. नरेंद्र कोहली के उपन्यास दीक्षा के साथ ही हिंदी साहित्य में सांस्कृतिक पुनर्जागरण का युग शुरू हुआ, जिसे हिंदी साहित्य में नरेंद्र कोहली युग का नाम देने की चर्चा है। 17 अप्रैल 2021 को इनका देहांत हो गया। 6 जनवरी 1940 को सियालकोट, पाकिस्तान में इनका जन्म हुआ था। डॉ मधुरिमा कोहली इनकी पत्नी है। इनकी शिक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय से हुई है।
उपन्यास, व्यंग्य, नाटक, कहानी के अलावा संस्मरण, निबंध जैसी सभी विधाओं में लगभग सौ पुस्तकें लिख चुके है नरेन्द्र कोहली। उन्होंने महाभारत की कथा को अपने उपन्यास महासमर के आठ खंडों में समाहित किया। पौराणिक एवं ऐतिहासिक चरित्रों की गुत्थियां सुलझाते हुए उन्होंने आधुनिक समाज की बुनियाद रखने में अहम भूमिका निभाई। दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी में स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट पूरा करने के बाद डॉ. कोहली ने कुछ दिन अध्यापन कार्य किय।
इन्हें शलाका सम्मान, साहित्य भूषण, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान पुरस्कार, साहित्य सम्मान तथा पद्मश्री सहित दर्जनों पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
उनके चर्चित उपन्यासों में पुनरारंभ, आतंक, आश्रितों का विद्रोह, साथ सहा गया दुख, मेरा अपना संसार, दीक्षा, अवसर, जंगल की कहानी, संघर्ष की ओर, युद्ध, अभिज्ञान, आत्मदान, प्रीतिकथा, कैदी, निचले फ्लैट में, संचित भूख आदि मुख्य हैं। संपूर्ण रामकथा को उन्होंने चार खंडों में 1800 पन्नों के वृहद उपन्यास में पेश किया।
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