केशव बलिराम हेडगेवार पेशे से डॉक्टर थे लेकिन उन्होंने एक ऐसा संगठन खड़ा किया, जिसकी जड़ें आज भारत में बहुत मजबूत हैं, जिसके बिना आज राजनीति और संस्कृति अधूरा है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नींव रखने वाले डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म 01 अप्रैल को नागपुर के ब्राह्मण परिवार में हुआ था। शुरुआती पढ़ाई नागपुर के नील सिटी हाईस्कूल में हुई। जहां वंदेमातरम गाने के कारण उन्हें निकाल दिया गया तो घरवालों ने पढ़ाई के लिए यवतमाल और पुणे भेजा। मैट्रिक के बाद हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी एस मूंजे ने उन्हें मेडिकल की पढ़ाई के लिए कोलकाता भेजा। आजादी के संघर्ष के दौरान वो पहले कांग्रेस में शामिल हुए। कांग्रेसी पदाधिकारी के तौर पर गिरफ्तारी भी दी। फिर उनका कांग्रेस से मोहभंग हो गया। जिसके बाद विश्व के सबसे बड़ें स्वंयसेवी संगठन अत्र राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नींव रखी।
डॉ. हेडगेवार जब कोलकाता में डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहे थे, उन्हीं दिनों वो वहां देश की नामी क्रांतिकारी संस्था अनुशीलन समिति से जुड़ गये। 1915 में नागपुर लौटने पर वह कांग्रेस में सक्रिय हो गए। कुछ समय में विदर्भ प्रांतीय कांग्रेस के सचिव भी रहें। हालांकि इस दौरान वो हिंदू महासभा में भी रहे।
1920 में जब नागपुर में कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ तो उन्होंने कांग्रेस में पहली बार पूर्ण स्वतंत्रता को लक्ष्य बनाने के बारे में प्रस्ताव पेश किया, जो तब पारित नहीं हुआ। 1921 में कांग्रेस के असहयोग आन्दोलन में वो भी सत्याग्रहियों में थे, जिन्होंने गिरफ्तारी दी। उन्हें एक वर्ष की जेल की सजा भी हुई।
भारत में शुरू हुए धार्मिक-राजनीतिक खिलाफत आंदोलन के चलते उनका कांग्रेस से मन दु:खी हो गया। मुंजे के अलावा हेडगेवार के व्यक्तित्व पर बाल गंगाधर तिलक और विनायक दामोदर सावरकर का बड़ा प्रभाव था।
हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना को साकार करने के लिए 1925 में विजय दशमी के दिन डॉ. हेडगेवार ने आरएसएस की नींव रखी। वह संघ के पहले सरसंघचालक बने। हेडगेवार ने शुरू से ही संघ को सक्रिय राजनीति से दूर सिर्फ सामाजिक-धार्मिक गतिविधियों तक सीमित रखा।
हेडगेवार का मानना था कि संगठन का प्राथमिक काम हिंदुओं को एक धागे में पिरो कर एक ताकतवर समूह के तौर पर विकसित करना है। हर रोज सुबह लगने वाली शाखा में कुछ खास नियमों का पालन होता था।
डॉ. हेडगेवार का निधन 21 जून, 1940 को हुआ। उनके बाद सरसंघचालक की जिम्मेदारी माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर को सौंप दी गई।
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