पक्षियों के अद्भुत संसार में गौरैया का अपना एक अलग ही एक मुकाम है। हर साल 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है। पहला विश्व गौरेया दिवस यानि World Sparrow Day 20 मार्च, 2010 को विश्व भर में मनाया गया। गौरैया उन कुछ विशेष पक्षियों में से है जिन्हें इंसानों के साथ रहना पसंद है। यह नन्ही सी, प्यारी सी, छोटी सी पक्षी इंसानों के आसपास या उनके घरों में ही घोंसला बनाकर रहती है। दिल्ली सरकार ने गौरैया के संरक्षण के लिए इसे राज्य पक्षी का दर्जा दे रखा है।
गौरेया खासकर मकानों के झरोखें, टूटी दिवारों में, बबूल, कनेर, नींबू, अनार, मेहंदी, बांस, चांदनी, अमरूद आदि के पेड़ों पर अपने मकान यानि घोषले बनाती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि मोबाइल टावर भी गौरेया की प्रजनन क्षमता को प्रभावित करती है।
आमतौर पर गौरेया बाजरा, धान, पके चावल के दाने और सुंडियां खाती है। अब यह सब बहुत कम मिलता है। पहले लोग घर का आटा पिसाने के लिए गेहूं को धोते थे और उसे सुखाने के लिए छत पर रखते थे। इसे खाने के लिए बहुत से पक्षी आते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं होता है। गौरेया अपने बच्चों को सुंडियां खिलाती है, जो प्रोटीन से भरे होते हैं, मगर पेस्टीसाइड का इस्तेमाल होने से सुंडियां मर जाती है। इससे गौरेया के बच्चों को सुंडियां मिलती नहीं और वह मर जाते हैं।
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