संयुक्त राष्ट्र हर वर्ष 11 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय महिला वैज्ञानिक दिवस मनाता है। इसका मकसद महिलाओं और लड़कियों को विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग और गणित के क्षेत्र में लाने के लिए प्रोत्साहित करना है। इस बार अंतरराष्ट्रीय महिला वैज्ञानिक दिवस की थीम ‘कोविड-19 के खिलाफ संघर्ष में अग्रणी महिला विज्ञानी’ रखी गई है।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अनुसार, 2019-20 में 16.6 फीसदी महिलाएं देश में सीधे तौर पर शोध एवं विकास (आरएंडडी) से जुड़ी हैं। यह संख्या पुरुषों की तुलना में बेहद कम है। वहीं आईआईटी दिल्ली के सहयोग से वीमन इंटरप्रोन्योरशिप एवं इमपॉवरमेंट (डब्ल्यूईई) के तहत 170 स्टार्टअप के लिए महिलाओं को प्रशिक्षण दिया गया है। तकनीक के क्षेत्र में देश में इस तरह का यह पहला प्रयास है।
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक भारत में एसटीईएम से 43 फीसदी छात्राएं पढ़ाई कर रही हैं। भारत इस मामले में 17 देशों की सूची में पहले नंबर पर है। इसी सूची में रूस दूसरे नंबर पर है जबकि अमेरिका 34 फीसदी के साथ नौवें नंबर पर है। भारत में काम कर रहे 2.80 लाख वैज्ञानिक, इंजीनियर और टेक्नोलॉजिस्ट में सिर्फ 14 फीसदी महिलाएं हैं।
यूनेस्को के आंकड़े के अनुसार, दुनियाभर में केवल 33 फीसदी महिला शोधकर्ता हैं। यह स्थिति तब है जब स्टेम के तहत बैचलर्स और मास्टर्स में दाखिले का प्रतिशत 45 और 55 प्रतिशत है। 44 फीसदी छात्राएं पीएचडी कार्यक्रम में दाखिला लेती हैं। स्वास्थ्य और सामाजिक कार्यों के क्षेत्र में 70 फीसदी महिलाएं हैं, लेकिन उन्हें पुरुषों की तुलना में 11 फीसदी कम वेतन दिया जाता है।
अब तक सिर्फ 25 महिलाओं को फिजिक्स, केमिस्ट्री, मेडिसिन और इकनॉमिक्स के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार मिला है।
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