दुनियाभर में लुप्त हो रही वनस्पतियों और जीव-जंतुओं की प्रजातियों के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए हर वर्ष 3 मार्च को विश्व वन्यजीव दिवस मनाया जाता है।
दुनियाभर से लुप्त हो रहे जंगली फल-फूलों के अंतरराष्ट्रीय ट्रेड को प्रतिबंधित करने के लिए 3 मार्च 1973 को यूनाइटेड नेशंस के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर हुए थे। इस खास दिन की याद में 20 दिसंबर 2013 को संयुक्त राष्ट्र महासभा के 63वें सत्र में तय हुआ कि हर साल 3 मार्च को वर्ल्ड वाइल्डलाइफ डे मनाया जाएगा। 3 मार्च 2014 को पहला विश्व वन्यजीव दिवस मनाया गया।
संयुक्त राष्ट्र महासभा के द्वारा इस साल विश्व वन्यजीव दिवस की थीम ‘वन और आजीविका: लोगों और ग्रह को बनाए रखना’ है। वर्ष 2020 में विश्व वन्यजीव दिवस की थीम ‘पृथ्वी पर जीवन कायम रखना’ रखी गई थी। वहीं इससे पहले साल 2019 में ‘पानी के नीचे जीवन: लोगों और ग्रह के लिए’ की थीम थी।
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पशुओं और पौधों की करीब 10 लाख से भी अधिक प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं। इस पर नजर रखने वाली संस्था IPBES के मुताबिक, इंसानों के इतिहास में ऐसी स्थिति पहले कभी नहीं बनी है।
अमेरिका की ब्राउन यूनिवर्सिटी के अध्ययन के मुताबिक, 6 करोड़ वर्ष पहले जब इंसान नहीं थे, तब के मुकाबले आज 1,000 गुना ज्यादा तेजी से प्रजातियों की संख्या घट रही है। इस रिपोर्ट का कहना है कि फिलहाल जो कुछ भी रह गया है, उसे बचाने के लिए तुरंत कदम उठाने की आवश्यकता है।
वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (WWF) की रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि ताजे पानी में रहने वाले जानवरों की नस्लों में सबसे तेजी से कमी हुई है। साल 1974 से लेकर 2018 के बीच करीब 84 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।
आप इस बात का ध्यान रखें कि वन्य जीवों सहित अपने प्राकृतिक परिवेश और संसाधनों का संरक्षण नागरिकों का संवैधानिक कर्तव्य है। मनुष्य पृथ्वी का स्वामी नहीं है। वन एवं वन्यजीव प्रकृति के अभिन्न अंग हैं। प्रकृति और वन्यजीवों का संरक्षण हमारा कर्तव्य है और मूलभूत जरूरत भी। जल, जंगल और प्रकृति पर वन्यजीवों का उतना ही हक है, जितना कि हमारा है।
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