भारत सरकार की नरेन्द्र मोदी मंत्रिमंडल ने 17 फरवरी, 2021 को किशोर न्याय देखभाल और बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2015 में संशोधन को मंजूरी दे दी है। किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015 का विस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय संपूर्ण भारत पर है।
इस संशोधन का प्रस्ताव है कि डीएम और एडीएम उन एजेंसियों के कामकाज की निगरानी करेंगे जो प्रत्येक जिले में इस अधिनियम को लागू कर रही हैं। इस संशोधन के बाद, जिलों की बाल संरक्षण इकाई जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) के अधीन कार्य करेगी। अब, डीएम स्वतंत्र रूप से बाल कल्याण समिति, और विशिष्ट किशोर पुलिस इकाई का मूल्यांकन कर सकते हैं। वह चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूट की क्षमता और पृष्ठभूमि की जांच कर सकता है, जिसके बाद पंजीकरण के लिए उनकी सिफारिश की जाएगी। यह संशोधन जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की धारा 61 के अनुसार गोद लेने के आदेश जारी करने के लिए जिला मजिस्ट्रेट और अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट को अधिकृत करते हैं। यह संशोधन जिलाधिकारियों को इसके सुचारू क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए सशक्त बनाता है।
केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण महिला और बाल विकास मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त और वैधानिक निकाय है। यह 1990 में स्थापित किया गया था। CARA भारतीय बच्चों को गोद लेने का नोडल निकाय है। यह देश और अंतर-देश गोद लेने की निगरानी और विनियमन भी करता है।
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संविधान के अनुच्छेद 15 के खंड (3), अनुच्छेद 39 के खंड (ड) और खंड (च), अनुच्छेद 45 और अनुच्छेद 47 के उपबंधों के अधीन यह सुनिश्चित करने के लिए कि बालकों की सभी आवश्यकताओं को पूरा किया जाए और उनके मूलभूत मानव अधिकारों की पूर्णतया संरक्षा की जाए, शक्तियां प्रदान की गई हैं और कर्तव्य बताएं गए हैं।
‘दत्तकग्रहण’ का अर्थ है जिसके माध्यम से दत्तक बालक को उसके जैविक माता-पिता से स्थायी रूप से अलग कर दिया जाता है और वह अपने दत्तक माता-पिता का ऐसे सभी अधिकारों, विशेषाधिकारों और उत्तरदायित्वों सहित, जो किसी जैविक बालक से जुड़े हों, विधिपूर्ण बालक बन जाता है।
‘पश्चात्वर्ती देखरेख” से उन व्यक्तियों की, जिन्होंने अठारह वर्ष की आयु पूरी कर ली है, किन्तु इक्कीस वर्ष की आयु पूरी नहीं की है और जिन्होंने समाज की मुख्य धारा से जुड़ने के लिए किसी संस्थागत देखरेख का त्याग कर दिया है, वित्तीय और अन्यथा सहायता का उपबंध किया जाना अभिप्रेत है
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‘प्राधिक्कृत विदेशी दत्तकग्रहण अभिकरण’ से तात्पर्य ऐसा कोई विदेशी, सामाजिक या बाल कल्याण एजेंसी है जो अनिवासी भारतीय के या विदेशी भारतीय नागरिक या भारतीय मूल के व्यक्तियों या विदेशी भावी दत्तक माता-पिता के भारत से किसी बालक के दत्तकग्रहण संबंधी आवेदन का समर्थन करने की उस देश क उनके कन्द्रीय प्राधिकरण या सरकारी विभाग की सिफारिश पर केन्द्रीय दत्तकग्रहण स्रोत प्राधिकरण द्वारा प्राधिकृत है।
‘बालक’ ऐसे बच्चे को कहा जाता है जिसने अठारह वर्ष की आयु पूरी नहीं की है। ‘विधि का उल्लंघन करने वाला बालक’ से ऐसा बालक अभिप्रेत है, जिसके बारे में यह अभिकथन है या पाया गया है कि उसने कोई अपराध किया है और जिसने उस अपराध के किए जाने की तारीख को अठारह वर्ष की आयु पूरी नहीं की है।
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‘अभ्यर्पित बालक’ उसे कहा जाता है, जिसके माता-पिता अथवा संरक्षक द्वारा, ऐसे शारीरिक, भावनात्मक और सामाजिक कारकों के कारण, जो उनके नियंत्रण से परे हैंं
‘छोटे अपराधों’ के अंतर्गत ऐसे अपराध आते हैं, जिनके लिए भारतीय दंड संहिता या तत्समय प्रवृत किसी अन्य विधि के अधीन अधिकतम दंड तीन मास तक के कारावास का विधान है।
‘जघन्य अपराध ‘ के अंतर्गत ऐसे अपराध आते हैं, जिनके लिए भारतीय दंड संहिता या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन न्यूनतम दंड सात वर्ष या उससे अधिक के कारावास का है।
‘घोर अपराध’ के अंतर्गत ऐसे अपराध आते हैं, जिनके लिए भारतीय दंड संहिता या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन अधिकतम दंड तीन से सात वर्ष के बीच के कारावास का है।
‘अनिवासी भारतीय’ उसे कहा जाता हैं जिसके पास भारतीय पासपोर्ट है और वर्तमान में एक से अधिक वर्ष से विदेश में रह रहा है।
‘अनाथ’ उसे कहा जाता है जिसके जैविक या दत्तक माता-पिता या विधिक संरक्षक नहीं है जिसका विधिक संरक्षक बालक की देखरेख करने का इच्छुक नहीं है या देखरेख करने में समर्थ नहीं है।
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‘भारतीय मूल के व्यक्ति” से तात्पर्य है कि जिसके पारम्परिक पूर्वपुरुषों में से कोई भारतीय है या था और जो वर्तमान में केन्द्रीय सरकार द्वारा जारी किया गया भारतीय मूल के व्यक्ति होने संबंधी कार्ड (पर्सन आफ इंडियन आरिजन कार्ड) धारण किए हुए है।
‘सुरक्षित स्थान’ से तात्पर्य ऐसा कोई स्थान या ऐसी संस्था, जो पुलिस हवालात या जेल नहीं है। जिसकी स्थापना पृथक रूप से की गई है या जो, यथास्थिति, किसी संप्रेक्षण गृह या किसी विशेष गृह से जुड़ी हुई है, जिससे संबंध व्यक्ति विधि का उल्लंघन करने वाले अभिकथित बालक या उल्लंघन करते पाए गए ऐसे बालकों को, बोर्ड या बालक न्यायालय, दोनों, के आदेश से जांच के दौरान या आदेश में यथा विनिर्दिष्ट अवधि और प्रयोजन के लिए दोषी पाए जाने के पश्चात् सतत् पुनर्वासन के दौरान अपनाने और उनकी देखरेख करने का इच्छुक हैं
‘विशेष गृह’ से किसी राज्य सरकार द्वारा या किसी स्वैच्छिक या गैर-सरकारी संगठन द्वारा विधि का उल्लंघन करने वाले ऐसे बालकों को, जिनके बारे में जांच के माध्यम से यह पाया जाता है कि उन्होंने अपराध किया है और जिन्हें बोर्ड के आदेश से ऐसी संस्था में भेजा जाता है।
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