भारतीय सैन्य-वीरों के तप-त्याग व शौर्य का अमर-गान ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ लिखने वाले कवि प्रदीप जी को भला कौन नहीं जानता। आज प्रदीप जी का जन्मदिन भी है।
6 फरवरी 1915 में मध्य प्रदेश के उज्जैन के बड़नगर में जन्म लेने वाले कवि प्रदीप का असली नाम ‘रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी’ था। लिखने-पढ़ने का संस्कार उन्हें उनके घर में मिले। उस समय जब देश में स्वतंत्रता आंदोलन की लपटें तेज हो रही थीं, रामचंद्र के भीतर भी उमड़-घुमड़ के एक प्रदीप आकार ले रहा था। उनकी पहचान 1940 में रिलीज हुई फिल्म ‘बंधन’ से हुई।
इनके गीत भाईचारा-देश प्रेम की सही समझ पैदा करते हैं
‘ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में फर लो पानी
कुछ याद उन्हें भी कर लो, जो लौट के फिर ना आएं’
आजादी के बाद से कवि प्रदीप की ये पंक्तियां गीतों का सिरमौर बनी हुई हैं। इन्हें भारतीय शब्दों की आकाशगंगा में एक चमकता हुआ सितारा भी कहा जाता है, उनकी ये पंक्तियां नस-नस में देशभक्ति का जज़्बा पैदा करती हैं और सही रास्ते के चयन का मार्ग प्रशस्त करती हैं, मनोबल बढ़ाती हैं। एक बार कवि प्रदीप ने कहा था कि 1962 के भारत-चीन युद्ध में भारत की हार से लोगों का मनोबल गिर गया था, ऐसे में सरकार की तरफ़ से फ़िल्म जगत के लोगों से ये अपील की गई कि- भई अब आप लोग ही कुछ करिए। कुछ ऐसी रचना करिये कि पूरे देश में एक बार फिर से जोश आ जाए और चीन से मिली हार के ग़म पर मरहम लगाया जा सके।
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उसके बाद इन्होंने यह गीत लिखा, जिसे स्वर कोकिला लता जी ने अपनी आवाज दी, उस समय भारत के पहले प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू भी वहां मौजूद थे, और उनकी भी आंखें नम हो गईं थीं। कवि प्रदीप ने इस गीत का राजस्व युद्ध विधवा कोष में जमा करने की अपील की। आज भी यह गीत जब बजता है, लोग ठहर जाते हैं, रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
1959 में बनी फिल्म ‘पैगाम’ के गीत को कवि प्रदीप ने ही लिखा था और सी रामचंद्र ने संगीत से सजाया, मन्ना डे ने आवाज दी थी। गाने की पंक्तियां सही मायनों में गंगा-जमुनी तहजीब से लोगों का परिचय करवाती हैं। उनके गीतों में सामाजिक न्याय की आवाज मुखर होती है। पुरानी, रूढ़ हो चुकी मान्यताओं के प्रति नकार है, प्रेम, सद्भाव और एकजुटता का संदेश है। आपसी सहयोग और भईचारे का आह्वान है।
1943 की सुपर-डुपर हिट फिल्म किस्मत के गीत “दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है” ने उन्हें देशभक्ति गीत के रचनाकारों में अमर कर दिया। गीत के अर्थ से क्रोधित तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने उनकी गिरफ्तारी के आदेश भी दे दिए।
इससे बचने के लिए कवि प्रदीप को भूमिगत होना पड़ा था। कवि प्रदीप अपने गीतों के जरिए सच के पक्ष में तन के खड़े होते हैं, उन्होंने 71 फिल्मों के लिए 1700 गीत लिखे। वतन पर मर मिटने का जज़्बा पैदा करने वाले इस गीतकार को भारत सरकार ने सन् 1997-98 में ‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ से सम्मानित किया।
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कवि प्रदीप के लिखे गीत- ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’, ‘साबरमती के संत’, ‘हम लाए हैं तूफान से किश्ती निकाल के’, ‘आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं’, ‘इंसान का इंसान से हो भाईचारा’ को बढ़ावा देते हैं। ‘आज के इस इंसान को ये क्या हो गया’ गीत सन 1963 में फिल्म ‘अमर रहे प्यार’ रिलीज हुई थी के लिए लिखा था। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के प्रयास से कवि प्रदीप को दादा साहब फाल्के अवार्ड हासिल हुआ।
11 दिसम्बर 1998 को 83 वर्ष के उम्र में इस महान कवि का मुम्बई में देहांत हो गया। उनके लिखे कालजयी गीतों और कविताओं का आकर्षण उस जमाने में भी था और आज भी है, और हमेशा बरकरार रहेगा।
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