लगभग 46 साल पहले उत्तराखंड में एक आंदोलन की शुरुआत हुई थी, जिसे नाम दिया गया था चिपको आंदोलन। इस आंदोलन को चंडीप्रसाद भट्ट और गौरा देवी ने शुरू किया था। जिसे बाद में भारत के प्रसिद्ध पर्यावरणविद् एवं पद्म विभूषण पुरस्कार से सम्मानित सुंदरलाल बहुगुणा ने नेतृत्व किया।
इस आंदोलन में पेड़ों को काटने से बचने के लिए गांव के लोग पेड़ से चिपक जाते थे, इसी वजह से इस आंदोलन का नाम चिपको आंदोलन पड़ा था।
चिपको आंदोलन की शुरुआत उत्तर प्रदेश वर्तमान उत्तराखंड के चमोली जिले में गोपेश्वर नाम के एक स्थान पर की गई थी। यह आंदोलन साल 1972 में शुरु हुई जंगलों की अंधाधुंध और अवैध कटाई को रोकने के लिए शुरू किया गया था। साल 1974 में 26 मार्च को चिपको आंदोलन की शुरुआत हुई थी।
इस आंदोलन में वनों की कटाई को रोकने के लिए गांव के पुरुष और महिलाएं पेड़ों से लिपट जाते थे और ठेकेदारों को पेड़ नहीं काटने दिया जाता था। जिस समय यह आंदोलन चल रहा था, उस समय केंद्र की राजनीति में भी पर्यावरण एक एजेंडा बन गया था। इस आन्दोलन को ही ध्यान में रखते हुए वर्तमान केंद्र सरकार ने वन संरक्षण अधिनियम बनाया।
इस अधिनियम के तहत वन की रक्षा करना और पर्यावरण को जीवित करना है। चिपको आंदोलन की वजह से साल 1980 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक विधेयक बनाया था जिसके तहत हिमालयी क्षेत्रों के वनों को काटने पर 15 सालों का प्रतिबंध लगा दिया था।