चौरी-चौरा घटना के सौ साल पूरे होने के मौके पर आयोजित समारोह का वर्चुअल उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 4 फरवरी को किया गया। उत्तर प्रदेश सरकार चौरी-चौरा की घटना के सौ साल पूरे होने पर इस शताब्दी समारोह का आयोजन कर रही है। इस मौके पर एक डाक टिकट का भी विमोचन किया गया।
यह कार्यक्रम उत्तर प्रदेश के सभी 75 ज़िलों में आयोजित किया गया। चौरी-चौरा घटना की याद में इस समारोह के अंतर्गत पूरे साल आयोजन होंगे और 4 फरवरी 2022 को इसका समापन होगा। इसके तहत विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाएंगी।
महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के दौरान 4 फरवरी 1922 को कुछ लोगों की गुस्साई भीड़ ने गोरखपुर के चौरी-चौरा के पुलिस थाने में आग लगा दी थी। इसमें 23 पुलिस वालों की मौत हो गई थी। इस कांड में 172 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई थी। हालांकि 151 लोग फांसी की सजा से बच गए थे जबकि 19 लोगों को 2 से 11 जुलाई 1923 के दौरान फांसी दे दी गई थी। उन्हीं की याद में एक स्मारक बनाया गया है। अब यूपी बोर्ड की किताबों में पढ़ाया जाएगा चौरी-चौरा कांड, इसका आदेश सीएम योगी आदित्यनाथ द्वारा जारी किया गया है।
चौरी-चौरा दरअसल दो अलग-अलग गांवों के नाम थे। रेलवे के एक ट्रैफिक मैनेजर ने इन गांवों का नाम एक साथ किया था। उन्होंने जनवरी 1885 में यहाँ एक रेलवे स्टेशन की स्थापना की थी। इसलिए शुरुआत में सिर्फ़ रेलवे प्लेटफॉर्म और मालगोदाम का नाम ही चौरी-चौरा था।
चौरी चौरा घटना के दौरान तीन नागरिकों की भी मौत हो गई थी। इससे पहले यह पता चलने पर की चौरी-चौरा पुलिस स्टेशन के थानेदार ने मुंडेरा बाज़ार में कुछ कांग्रेस कार्यकर्ताओं को मारा है, गुस्साई भीड़ पुलिस स्टेशन के बाहर जमा हुई थी। इस हिंसा के बाद महात्मा गांधी ने 12 फरवरी 1922 को असहयोग आंदोलन वापल ले लिया था। महात्मा गांधी के इस फैसले को लेकर क्रांतिकारियों का एक दल नाराज़ हो गया था।
1971 में गोरखपुर ज़िले के लोगों ने चौरी-चौरा शहीद स्मारक समिति का गठन किया। इस समिति ने 1973 में चौरी-चौरा में 12.2 मीटर ऊंचा एक मीनार बनाई। इसके दोनों तरफ एक शहीद को फांसी से लटकते हुए दिखाया गया था। इसे लोगों के चंदे के पैसे से बनाया गया। इसकी लागत तब 13,500 रुपये आई थी।
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