भारत में बजट सत्र शुरू होने से पहले राष्ट्रपति महोदय का अभिभाषण होता हैं जिसके बाद प्रधानमंती चर्चा के बाद जवाब देते हैं वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण के साथ संसद का बजट सत्र शुरू हो गया। अभिभाषण के बाद इस पर चर्चा होगी और बाद में प्रधानमंत्री मोदी इसका जवाब देंगे।
सदन को संबोधित करने की परंपरा भारतीय नहीं, बल्कि अंग्रेजों की है। ब्रिटिश पार्लियामेंट की वेबसाइट के अनुसार, सदन को संबोधित करने की परंपरा 16वीं सदी से भी ज्यादा पुरानी है। उस वक्त वहां के राजा या रानी सदन को संबोधित करती थीं। लेकिन, 1852 के बाद से हर साल ब्रिटेन में सदन को वहां की क्वीन संबोधित करती आ रही हैं। यही सिस्टम अंग्रेजों के साथ भारत में भी आया। 1919 में ही भारत में राज्यसभा का गठन हुआ, लेकिन उसे उस समय ‘काउंसिल ऑफ स्टेट’ कहा जाता था। हालांकि, लोकसभा का इतिहास 1853 से शुरू होता है। शुरुआत में लोकसभा को ‘लेजिस्लेटिव काउंसिल’ कहा जाता था, जिसमें 12 सदस्य थे।
आजादी के बाद 1950 से सत्र शुरू होने से पहले राष्ट्रपति का अभिभाषण होता है। संविधान के अनुच्छेद 86 (1) में इसका प्रावधान है। इसके तहत आम चुनावों के बाद के पहले और साल के पहले सत्र की शुरुआत राष्ट्रपति के अभिभाषण से होती है और उसके बाद दोनों सदनों का काम शुरू होता है।
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ब्रिटेन की संसदीय प्रणाली में राजपरिवार का प्रमुख भारतीय संसदीय प्रणाली के राष्ट्रपति के बराबर होता है। ब्रिटेन में वहां के किंग या क्वीन को राष्ट्र प्रमुख का दर्जा दिया गया है। ब्रिटिश सिस्टम में किंग या क्वीन के भाषण को ‘कॉजेस ऑफ समन’ कहा जाता था। पहले जब भी राजघराने को पैसे की जरूरत होती थी, तब वह सदन की बैठक बुलाते थे। लेकिन, धीरे-धीरे सरकार अपनी नीतियां, कार्यक्रम और उपलब्धियां भी बताने लगी, क्योंकि किंग या क्वीन का भाषण सरकार ही तैयार करती थी। ब्रिटिश इंडिया के वक्त जब भारत में संवैधानिक संशोधन होने लगे तो यहां पर भी किंग/क्वीन की जगह गवर्नर जनरल या वायसराय सदन में भाषण देते थे। उसके बाद हमारे संविधान में भी इसे जोड़ा गया।
संसद के किसी एक सदन या एक साथ दोनों सदनों के सामने राष्ट्रपति के अभिभाषण का प्रावधान संविधान में किया गया है। इसका प्रावधान भारत सरकार अधिनियम,1919 में किया गया था और 1921 से यह चला आ रहा है। राष्ट्रपति जो अभिभाषण देते हैं, वह सरकार ही तैयार करती है। संविधान के आर्टिकल 86 (1) में राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वे जब चाहें तब संसद के किसी एक सदन या दोनों सदनों में अभिभाषण दे सकते हैं और इसके लिए सदस्यों को बुला सकते हैं। हालांकि, आज तक इस आर्टिकल का इस्तेमाल नहीं हुआ है। संविधान के आर्टिकल 87 (1) में यह प्रावधान है कि आम चुनाव के बाद पहले सत्र और हर साल के पहले सत्र में संसद के दोनों सदनों में राष्ट्रपति अभिभाषण देंगे।
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राष्ट्रपति का अभिभाषण संवैधानिक जरूरत है, क्योंकि उनके अभिभाषण के बिना सत्र शुरू नहीं हो सकता। संसद के दोनों सदनों में सालभर में तीन सत्र होते हैं। पहला- बजट सत्र, दूसरा- मानसून सत्र और तीसरा- शीतकालीन सत्र।
साल में सबसे पहले बजट सत्र होता है। इसलिए राष्ट्रपति इसी सत्र में दोनों सदनों को संबोधित करते हैं। लेकिन पहले ऐसा नहीं होता था। आजादी के बाद 1950 में जब संविधान लागू हुआ तो राष्ट्रपति को हर सत्र को संबोधित करना होता था, लेकिन बाद में इसमें संशोधन हुआ। संशोधन के बाद राष्ट्रपति आम चुनाव के बाद के पहले सत्र और साल के पहले सत्र को ही संबोधित करने लगे। लोकसभा चुनावों के बाद हर सांसद की शपथ के बाद और लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव के बाद ही राष्ट्रपति का अभिभाषण होता है। जब तक राष्ट्रपति दोनों सदनों में अभिभाषण नहीं दे देते, तब तक कोई अन्य कार्य नहीं किया जा सकता। वहीं, हर साल के पहले सत्र के पहले दिन ही राष्ट्रपति दोनों सदनों में अभिभाषण देते हैं।
राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद इस पर चर्चा होती है। इस चर्चा के लिए समय दोनों सदनों के अध्यक्ष तय करते हैं। लोकसभा के नियम 16 और राज्यसभा के नियम 14 के मुताबिक, अध्यक्ष सदन के नेता या प्रधानमंत्री से राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा का समय तय करेगा।
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इसके बाद लोकसभा के नियम 17 के तहत, सदन का कोई सदस्य धन्यवाद प्रस्ताव पेश करता है, जिसका अनुमोदन कोई दूसरा सदस्य करता है। इसके बाद धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा होती है। सांसद धन्यवाद प्रस्ताव में संशोधन की मांग भी कर सकते हैं। ये संशोधन उन विषयों के बारे में दिए जाते हैं, जिनका जिक्र राष्ट्रपति के अभिभाषण में किया गया हो या ऐसे विषयों पर भी दे सकते हैं जिनका जिक्र अभिभाषण में किया जाना चाहिए था।
लोकसभा के नियम 20 (1) और राज्यसभा के नियम 18 के तहत, धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा का जवाब देने का अधिकार सरकार के पास है। प्रधानमंत्री चाहें तो खुद या सरकार की तरफ से कोई मंत्री चर्चा के बाद जवाब दे सकता है। भले ही वे चर्चा के दौरान सदन में मौजूद रहे हों या न रहे हों। प्रधानमंत्री या किसी मंत्री की तरफ से सरकार का जवाब दिए जाने के बाद सदन के अन्य सदस्य को उत्तर देने का अधिकार नहीं होता।
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संसद को इस बात को जानने का अधिकार है कि सरकार क्या कर रही है और क्या करने वाली है। इसलिए राष्ट्रपति संसद को संबोधित करते हैं और उसे सरकार की नीतियों और कामकाज के बारे में बताते हैं, क्योंकि राष्ट्रपति भी संसद का ही हिस्सा हैं। क्योंकि राष्ट्रपति का अभिभाषण सरकार ही तैयार करती है, इसलिए इसमें सरकार के अगले एक साल के कामकाज का ब्योरा भी रहता है।
नहीं। दोनों सदनों के किसी भी सदस्य को राष्ट्रपति के अभिभाषण पर सवाल उठाने का अधिकार नहीं है। लेकिन, धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान सदस्य बहस कर सकते हैं। इस दौरान सदस्य ऐसे विषय नहीं उठा सकते, जिसका सीधा संबंध सरकार से नहीं है। इसके साथ ही बहस के दौरान राष्ट्रपति का नाम भी नहीं ले सकते, क्योंकि अभिभाषण का प्रस्ताव सरकार तैयार करती है।
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