इजरायल और भारत के बीच रिश्ते अब नए दौर में पहुंच चुके हैं। भारत ने पहली बार इजरायल के समर्थन में यूएन में मतदान किया। हालांकि, पूर्व में भी इजरायल ने हर मुश्किल दौर में भारत की मदद की। चीन युद्ध हो या 1971 और 1999 में पाक के साथ युद्ध, इजरायल ने अत्याधुनिक हथियारों से भारत की मदद की।
इजरायल और स्वतंत्र भारत का उदय एक ही वर्ष 1947 में हुआ था। हालांकि, आधिकारिक तौर पर इजरायल को स्वतंत्रता 1948 में मिली। दोनों देशों के शुरुआती संबंध अच्छे नहीं थे। 1947 में ही भारत ने इजरायल को एक राष्ट्र के तौर पर मान्यता देने के विरोध में वोट किया था। इसी तरह से 1949 में एक बार फिर भारत ने संयुक्त राष्ट्र में इजरायल को सदस्य देश बनाने के विरोध में वोट किया था। इजरायल के उदय के साथ शुरुआती 2 साल में भारत का पक्ष हमेशा इजरायल के खिलाफ ही रहा।
1950 में पहली बार भारत ने बतौर स्वतंत्र राष्ट्र इजरायल को मान्यता दी थी। इसके साथ ही भारत ने इजरायल का काउंसल को मुंबई में एक स्थानीय यहूदी कॉलोनी में 1951 में नियुक्त किया था। इसे 1953 में अपग्रेड कर काउंसलेट का दर्जा दिया। 1956 में इजरायल के विदेश मंत्री मोशे शेरेट ने भारत का दौरा स्वेज नहर को लेकर जारी विवाद के बीच किया था। स्वेज नहर का विवाद मिस्र और इजरायल के बीच था।
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1962 के चीन युद्ध के दौरान इजरायल ने पुरानी घटनाओं को एक सिरे से भुलाकर भारत की हथियारों और दूसरे युद्ध साधनों से मदद की थी। उस वक्त भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपने इजरायली समकक्ष से पत्र लिखकर मदद मांगी थी। इजरायल के तत्कालीन प्रधानमंत्री बेन गुरियन ने हथियारों से भरे जहाज को भारत रवाना कर पत्र का उत्तर दिया। भारत के सभी प्रमुख युद्धों में इजरायल ने भरपूर मदद की। 1971 में पाकिस्तान युद्ध और 1999 में करगिल युद्ध में भी इजरायल ने भारत को अत्याधुनिक हथियारों से मदद की। इतना ही नहीं इंदिरा गांधी ने जब भारत की खुफिया एजेंसी रॉ का गठन किया था तब भी इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने काफी मदद की।
1992 में पी वी नरसिम्हा राव भारत के प्रधानमंत्री थे उस वक्त भारत ने इजरायल के साथ कूटनीतिक संबंध बनाए। इजरायल के साथ भारत के बदलते संबंधों की एक वजह जॉर्डन, सीरिया और लेबनान जैसे अरब मुल्कों ने भी भारत को अपनी रूस और अरब की ओर झुकी विदेश नीति पर सोचने के लिए मजबूर किया। पीएलओ (फलस्तीन की आजादी के लिए संघर्ष करनेवाली संस्था) के प्रमुख यासिर अराफात के व्यक्तिगत तौर पर इंदिरा गांधी से अच्छे संबंध थे और कहा जाता है कि मुस्लिम वोटों के लिए वह इंदिरा के साथ रैली करने को भी तत्पर रहते थे।
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इजरायल और भारत के बीच बदले संबंधों की असली कहानी सार्वजनिक तौर पर 2015 से नजर आने लगी। संयुक्त राष्ट्र में इजरायल में मानवाधिकार अधिकारों के हनन संबंधी वोट प्रस्ताव के वक्त भारत गैर-मौजूद रहा। इसके बाद ही किसी भारतीय प्रधानमंत्री का पहला दौरा इजरायल में 2017 में हुआ और पीएम नरेंद्र मोदी ने 3 दिनों का इजरायल दौरा किया। 2018 में बेंजामिन नेतन्याहू ने 6 दिनों का भारत का विस्तृत दौरा किया। हालांकि, संयुक्त राष्ट्र में भारत ने यरुशलम को इजरायल की राजधानी के तौर पर मान्यता संबंधी प्रस्ताव के विरोध में वोट किया।
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