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Contract Farming : नए जमाने की खेती, किसानों के लिए फायदा या नुकसान

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भारत एक कृषि प्रधान देश है यहां की लगभग 70 प्रतिशत जनता खेती एवं इससे जुड़े व्यवसायों पर निर्भर है। हमारे देश में ज्यादातर छोटी जोत वाले किसान हैं। ये किसान अपने खेतों में कुछ ज्यादा प्रयोग भी नहीं कर पाते। स्थिति यह है कि लोग खेती-बाड़ी छोड़कर शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं।

यह खेती भी भगवान भरोसे होती है, कम बारिश, ज्यादा बारिश, आंधी, तुफान, आग, ओलावृष्टि, पशुओं का चट कर जाना इत्यादि परेशानियां खेती में होती है। सितंबर में सरकार तीन नए कृषि विधेयक लाई थी, जिन पर राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद वे कानून बन चुके हैं। लेकिन किसानों को ये कानून रास नहीं आ रहे हैं क्योंकि उनका कहना है कि इनसे किसानों को नुकसान और निजी खरीदारों और कॉरपोरेट घरानों को फायदा होगा। इन्हीं में से एक है कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून, 2020, जिसका उद्देश्य अनुबंध खेती यानी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की इजाजत देना है।

कॉन्ट्रैक्ट खेती

अनुबंध पर खेती का मतलब ये है कि किसान अपनी जमीन पर खेती तो करता है, लेकिन अपने लिए नहीं बल्कि किसी और के लिए। कॉन्ट्रैक्ट खेती में किसान को पैसा नहीं खर्च करना पड़ता। इसमें कोई कंपनी या फिर कोई आदमी किसान के साथ अनुबंध करता है कि किसान द्वारा उगाई गई फसल विशेष को कॉन्ट्रैक्टर एक तय दाम में खरीदेगा। इसमें खाद, बीज से लेकर सिंचाई और मजदूरी सब खर्च कॉन्ट्रैक्टर के होते हैं। कॉन्ट्रैक्टर ही किसान को खेती के तरीके बताता है। फसल की क्वालिटी, मात्रा और उसके डिलीवरी का समय फसल उगाने से पहले ही तय हो जाता है।

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कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के फायदे

  •  खेती अधिक संगठित बनेगी
  •  किसानों को बेहतर भाव मिलेंगे
  • अपनी पूंजी लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
  • प्राकृतिक या मानवीय आपदा का बोझ किसान पर नहीं पड़ेगा।
  •  बाजार भाव में उतार-चढ़ाव के जोखिम से किसान मुक्त होगा।
  •  किसानों को बड़ा बाजार मिलेगा।
  • किसान को सीखने का अवसर मिलेगा।
  •  खेती के तरीके में सुधार होगा।
  • किसानों को बीज, फर्टिलाइजर के फैसले में मदद मिलेगी।
  •  फसल की क्वॉलिटी और मात्रा में सुधार होगा।

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से दिक्कते

  • बड़े खरीदारों के एकाधिकार को बढ़ावा मिल सकता है।
  • कम कीमत देकर किसानों के शोषण का डर हो सकता है।
  •  सामान्य किसानों के लिए समझना मुश्किल हो सकता है।
  • जागरूकता से ये दिक्कते कम की जा सकती है।

कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक, 2020

  •  कृषकों को व्यापारियों, कंपनियों, प्रसंस्करण इकाइयों, निर्यातकों से सीधे जोड़ना।
  • कृषि करार के माध्यम से बुवाई से पूर्व ही किसान को उसकी उपज के दाम निर्धारित करना।
  • बुवाई से पूर्व किसान को मूल्य का आश्वासन।
  • दाम बढ़ने पर न्यूनतम मूल्य के साथ अतिरिक्त लाभ।
  • इस विधेयक की मदद से बाजार की अनिश्चितता का जोखिम किसानों से हटकर प्रायोजकों पर चला जाएगा।
  • मूल्य पूर्व में ही तय हो जाने से बाजार में कीमतों में आने वाले उतार-चढ़ाव का प्रतिकूल प्रभाव किसान पर नहीं पड़ेगा।
  • इससे किसानों की पहुंच अत्याधुनिक कृषि प्रौद्योगिकी, कृषि उपकरण एवं उन्नत खाद बीज तक होगी।
  • इससे विपणन की लागत कम होगी और किसानों की आय में वृद्धि सुनिश्चित होगी।
  • किसी भी विवाद की स्थिति में उसका निपटारा 30 दिन में स्थानीय स्तर पर करने की व्यवस्था की गई है।
  • कृषि क्षेत्र में शोध एवं नई तकनीकी को बढ़ावा देना।

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सरकार की बात

  1. किसान को अनुबंध में पूर्ण स्वतंत्रता रहेगी कि वह अपनी इच्छा के अनुरूप दाम तय कर उपज बेच सकेगा।
  2. उन्हें अधिक से अधिक तीन दिन के भीतर भुगतान प्राप्त होगा।
  3. देश में 10 हजार कृषक उत्पादक समूह निर्मित किए जा रहे हैं।
  4. यह समूह (एफपीओ) छोटे किसानों को जोड़कर उनकी फसल को बाजार में उचित लाभ दिलाने की दिशा में कार्य करेंगे।
  5. अनुबंध के बाद किसान को व्यापारियों के चक्कर काटने की आवश्यकता नहीं होगी।
  6. खरीदार उपभोक्ता उसके खेत से ही उपज लेकर जा सकेगा।
  7. विवाद की स्थिति में कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने की आवश्यकता नहीं होगी।
  8. स्थानीय स्तर पर ही विवाद के निपटाने की व्यवस्था रहेगी।

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