भारतीय सेना के कर्नल नरेंद्र कुमार जिन्हें बुल के नाम से बुलाया जाता था उनका निधन हो गया है। उनके निधन पर प्रधामनंत्री नरेन्द्र मोदी, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत ने संवेदनाएं व्यक्त कीं। ये भारतीय सेना के ऐसे जांबाज थे, जिनके दृढ़ संकल्प और उच्च पर्वत शिखरों पर फतह करने की इच्छा ने न केवल भारतीय सेना की मदद की बल्कि रक्षात्मक पॉश्चर को मजबूत करने में सेना की मदद की जिससे भारतीय सेना वहां कब्जा कर पाई। ‘साल्तोरो रिज और लद्दाख के अन्य क्षेत्रों में भारत के मजबूत पॉश्चर नरेन्द्र कुमार की साहसिक यात्राओं का ही एक हिस्सा है। उनका नाम सेना के समृद्ध इतिहास में हमेशा के लिए अमर है।
दुनिया की सबसे ऊंची चोटियों पर तिरंगा लहराने वाले अदम्य साहस के प्रतीक कर्नल नरेंद्र ‘बुल’ कुमार का 87 साल की उम्र में निधन हो गया। उनकी रिपोर्ट पर ही सेना ने 13 अप्रैल, 1984 को ‘ऑपरेशन मेघदूत’ चलाकर सियाचिन पर कब्जा बरकरार रखा था। यह दुनिया की सबसे ऊंचे युद्ध क्षेत्र में पहली कार्रवाई थी।
कर्नल बुल नंदादेवी चोटी पर चढ़ने वाले पहले भारतीय थे। इसके अलावा वह माउंट एवरेस्ट, माउंट ब्लैंक और कंचनजंघा पर भी तिरंगा फहरा चुके थे। शुरुआती अभियानों में चार उंगलियां खोने के बाद भी उन्होंने इन चोटियों पर जीत हासिल की। कर्नल बुल 1965 में भारत की पहली एवरेस्ट विजेता टीम के उपप्रमुख थे। उन्होंने ‘बुल’ निकनेम को हमेशा अपने नाम के साथ लिखा। उन्हें परम विशिष्ट सेवा मेडल, अति विशिष्ट सेवा मेडल और कीर्ति चक्र जैसे सैन्य सम्मान के अलावा पद्मश्री तथा अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
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