बिहार में कुपोषण की स्थिति को देखते हुए सरकार अब आयरन व जिंकयुक्त गेहूं की खेती को प्रोत्साहित करने जा रही है। यह गेहूं जिंक व आयरन की कमी से होने वाले कुपोषण को दूर करने की क्षमता रखता है। यह व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। इसमें बीमारियां भी कम लगती हैं।
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विवि, पूसा के वैज्ञानिकों के द्वारा इसे विकसित किया गया है। गेहूं के इस नए प्रभेद राजेन्द्र गेहूं-3 को सेन्ट्रल वेराइटी रिलीज कमेटी ने अनुशंसित कर दिया है। इससे यह बीज उत्पादन चेन में शामिल हो गया। साथ ही राज्य में इसके उत्पादन का रास्ता भी साफ हो गया है। विवि के वैज्ञानिक के अनुसार 125-130 दिनों में तैयार होने वाली जिंक व आयरनयुक्त है। इसकी उपज क्षमता 55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
विवि के कुलपति डॉ. आरसी श्रीवास्तव के मार्गदर्शन व डीन डॉ.केएम सिंह, निदेशक अनुसंधान डॉ. मिथलेश कुमार व सह निदेशक अनुसंधान डॉ.एनके सिंह की देखरेख में विकसित इस प्रभेद ने राज्य के किसानों को बड़ी सौगात दी है। यह राज्य की गेहूं की पहली बायो फर्टिफाईड वेराइटी है। इसमें जिंक 43 पीपीएम एवं आयरन की मात्रा 42 पीपीएम है।
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