भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की उपलब्धियों को सम्मान देने एवं जागरूपता फैलाने के उद्देश्य से हर वर्ष 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस मनाया जाता है। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह द्वारा वर्ष 2012 में राष्ट्रीय गणित दिवस मनाने की घोषणा की गई।
श्रीनिवास रामानुजन का जन्म तमिलनाडु के इरोड में एक तमिल ब्राह्मण अयंगर परिवार में हुआ था। उनकी मां का नाम कोमलताम्मल और पिता का नाम श्रीनिवास अय्यंगर था। रामानुजन 1903 में कुंभकोणम के सरकारी कॉलेज में शामिल हुए। कॉलेज में, अन्य विषयों में उनकी लापरवाही के कारण वह परीक्षा में असफल रहे।
1912 में, उन्होंने मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में एक क्लर्क के रूप में काम करना शुरू किया, जहां उनके गणितीय ज्ञान को एक सहकर्मी ने मान्यता दी जो गणितज्ञ भी थे। उस सहकर्मी ने रामानुजन को प्रोफेसर जीएच हार्डी, ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के लिए भेजा। 1916 में उन्होंने बैचलर ऑफ साइंस (बीएससी) की डिग्री ट्रिनिटी कॉलेज से प्राप्त की। वे 1917 में लंदन मैथमेटिकल सोसाइटी के लिए चुने गए।
अगले साल, उन्हें एलीप्टिक फ़ंक्शंस और संख्याओं के सिद्धांत पर अपने शोध के लिए रॉयल सोसाइटी का फ़ेलो चुना गया। उसी वर्ष, अक्टूबर में, वह ट्रिनिटी कॉलेज के फेलो चुने जाने वाले पहले भारतीय बन गए। 1919 में रामानुजन भारत लौट आए और एक वर्ष बाद 32 वर्ष की आयु में असमय उनकी मृत्यु हो गई।
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रामानुजन का मन सिर्फ मैथ्स में लगता था। उन्होंने दूसरे सब्जेक्ट्स की ओर ध्यान ही नहीं दिया। नतीजतन उन्हें पहले गवर्मेंट कॉलेज और बाद में यूनिवर्सिटी ऑफ मद्रास की स्कॉलरशिप गंवानी पड़ी। इन सबके बावजूद मैथ्स के प्रति उनका लगाव ज़रा भी कम नहीं हुआ। 1911 में इंडियन मैथमेटिकल सोसाइट के जर्नल में उनका 17 पन्नों का एक पेपर पब्लिश हुआ जो बर्नूली नंबरों पर आधारित था। हार्डी के सानिध्य में रामानुजन ने खुद के 20 रिसर्च पेपर पब्लिश किए। 1916 में रामानुजन को कैंब्रिज से बैचलर ऑफ साइंस की डिग्री मिली और 1918 में वो रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन के सदस्य बन गए।
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