देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर के ट्रेंचिंग ग्राउंड में नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन का वेस्ट टू एनर्जी प्लांट बनेगा। ट्रेंचिंग ग्राउंड पर आने वाला ऐसा कचरा, जिसे रिसाइकिल नहीं किया जा सकता उससे प्लांट में कोयला (टोरीफाइड कोल) बनाया जाएगा। यही कोल खंडवा और आसपास के बिजली उत्पादन केंद्रों में जलाकर बिजली पैदा की जाएगी। प्लांट निर्माण और संचालन का पूरा खर्च एनटीपीसी उठाएगा। यह प्लांट वर्ष 2021 के अंत तक बनकर तैयार हो जाएगा।
इसका निर्माण इसी महीने शुरू होगा। इंदौर के अलावा भोपाल और बनारस में भी ऐसे प्लांट स्थापित किए जाएंगे। एनटीपीसी का दावा है कि फिलहाल देश में कहीं भी ऐसा प्लांट नहीं है। प्लांट निर्माण के लिए नगर निगम एनटीपीसी को जमीन उपलब्ध कराएगा। इस प्लांट से न तो निगम को कोई आय होगी, न ही कोई राशि एनटीपीसी को देनी होगी।
कचरे से बिजली बनाने का प्रोजेक्ट अधिकांश जगह असफल हो गया क्योंकि प्लांट की लागत ही नहीं निकल पाई। दरअसल कचरे से बिजली बनाने के लिए गीला-सूखा कचरा अलग-अलग नहीं किया जाता। भारत में 50 फीसद गीला और 50 फीसद सूखा कचरा निकलता है। 50 फीसद गीले कचरे में लगभग 85 फीसद नमी होती है। कचरे से बिजली बनाते वक्त इस नमी को खत्म करने में सूखे कचरे की ऊर्जा भी लग जाती है। जितनी ऊर्जा उत्पन्न होना चाहिए वो नहीं हो पाती है। इससे बिजली बनाना महंगा पड़ता है।
एनटीपीसी दावा कर रही है कि वेस्ट टू एनर्जी प्लांट इसलिए सफल होगा क्योंकि इसकी तकनीक अलग है। इसमें सिर्फ सूखा कचरा ही इस्तेमाल होगा। सूखे कचरे में से भी उसी कचरे का इस्तेमाल होगा जो रिसाइकिल नहीं हो सकता है। एनटीपीसी इस कचरे को कोयले में बदल देगी। प्रयोग के दौरान आए परिणाम अनुसार इस कोयले से 4000-5000 कैलोरी ऊर्जा उत्पन्न होगी। जो अमूमन सामान्य कोयले के बराबर ही है।
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