पश्चिम बंगाल में अमित शाह ने अपने दौरे के समय दिन का भोजन मतुआ समुदाय के बांग्लादेशी शरणार्थी के घर किया। तब से मतुआ समुदाय चर्चा में है। एक दिन पहले ही ममता बनर्जी ने भी इस समुदाय को सौगात देकर खुश करने की कोशिश की है। राज्य सरकार ने 25 हजार शरणार्थी परिवारों को जमीन का अधिकार सौंपा और कहा कि 1.25 लाख परिवारों को इसका लाभ होगा। ममता बनर्जी ने मतुआ डिवेलपमेंट बोर्ड के लिए 10 करोड़ रुपए आवंटित किए और नामाशुद्र डिवेलपमेंट बोर्ड के लिए 5 करोड़ रुपए दिए हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान मतुआ समुदाय के 100 साल पुराने मठ बोरो मां बीणापाणि देवी से आशीर्वाद लेकर बंगाल चुनाव अभियान की शुरुआत की थी। बांग्लादेश से शरणार्थी के रूप में आए अनुसूचित जाति के मतुआ समुदाय का 40 विधानसभा सीटों पर अच्छा प्रभाव है। उत्तर 24 परगना के आसपास 8-10 सीटों पर तो हार जीत पूरी तरह से इस समुदाय पर ही निर्भर करती है। केंद्र सरकार संशोधित नागरिकता कानून के जरिए उन्हें नागरिकता दिलाने को प्रतिबद्ध है।
बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में बोरो मां के पोते शांतनु ठाकुर को बोंगन लोकसभा सीट से टिकट दिया था। इस सीट पर बीजेपी ने पहली बार जीत दर्ज की थी। मतुआ समुदाय की जड़ें पूर्वी पाकिस्तान या मौजूदा बांग्लादेश से जुड़ी हैं। 1918 में अविभाजित बंगाल के बारीसाल जिले में पैदा हुईं बीनापाणि देवी को ‘मतुआ माता’या ‘बोरो मां’ यानी (बड़ी मां) कहा जाता है। उन्होंने ही इस संप्रदाय की शुरुआत की थी। उनकी शादी प्रमथ रंजन ठाकुर से हुई थी। आजादी के बाद वह परिवार के साथ पश्चिम बंगाल आ गईं। मतुआ संप्रदाय के अनुयायियों की संख्या पश्चिम बंगाल में बहुत अधिक है। मतुआ माता के परिवार के कई सदस्य राजनीति से जुड़े रहे हैं। 5 मार्च 2019 को मतुआ माता बीनापाणि देवी का निधन हो गया था।
15 मार्च 2020 को ममता बनर्जी को मतुआ संप्रदाय का संरक्षक घोषित किया गया। साल 2014 में बीनापाणि देवी के बड़े बेटे कपिल कृष्ण ठाकुर ने टीएमसी के टिकट पर बनगांव से लोकसभा चुनाव लड़ा और संसद पहुंचे। कपिल कृष्ण ठाकुर का 2015 में निधन हो गया। उपचुनाव में उनकी उनकी पत्नी ममता बाला ठाकुर यहां से सांसद बनीं। मतुआ माता के निधन के बाद उनके छोटे बेटे मंजुल कृष्ण ठाकुर बीजेपी में शामिल हो गए। उनके बेटे शांतनु ठाकुर अभी बनगांव से बीजेपी के सांसद हैं।
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