देशभर में सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइनस एवं कोरोना वायरस की वजह से ग्रीन पटाखों के भाव बढ़ते ही जा रहे हैं। क्योंकि पटाखों के उत्पादन में कमी आई है।अब ग्रीन पटाखों की नई किस्में बनने लगी हैं और बाजारों में आना शुरू भी हो गईं हैं। ग्रीन पटाखे सामान्य पटाखों के मुकाबले 30—50 फीसद तक कम प्रदूषण करते हैं।
इन पटाखों से कम फैलता है प्रदूषण
‘ग्रीन पटाखे’ राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) की खोज हैं जो पारंपरिक पटाखों जैसे ही होते हैं। विश्व में इसे प्रदूषण से निपटने के एक बेहतर तरीके की तरह देखा जा रहा है। ग्रीन पटाखे दिखने, जलने और आवाज में सामान्य पटाखों की तरह ही होते हैं। नीरी ने ग्रीन पटाखों पर केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन के उस बयान के बाद शोध शुरू किया था जिसमें उन्होंने ग्रीन पटाखों की जरूरत बताई थी।
ग्रीन पटाखों के प्रकार
ग्रीन पटाखों की बेहद ख़ास बात है जो सामान्य पटाखों से उन्हें अलग करती है। नीरी ने चार तरह के ग्रीन पटाखे बनाए हैं।
- पानी पैदा करने वाले पटाखे जलने के बाद पानी के कण पैदा करेंगे, जिसमें सल्फ़र और नाइट्रोजन के कण आसानी से घुल जाएंगे। नीरी ने इन्हें सेफ़ वाटर रिलीज़र का नाम दिया है। पानी प्रदूषण को कम करने का बेहतर तरीका माना जा रहा है।
- सल्फ़र और नाइट्रोजन कम पैदा करने वाले पटाखों को नीरी ने पटाखों को STAR क्रैकर का नाम दिया है, यानी सेफ़ थर्माइट क्रैकर। इनमें ऑक्सीडाइज़िंग एजेंट का उपयोग होता है जिससे जलने के बाद सल्फ़र और नाइट्रोजन कम मात्रा में पैदा होते हैं। इसके लिए ख़ास तरह के केमिकल का इस्तेमाल होता है।
- कम एल्यूमीनियम का इस्तेमाल वाले पटाखे में सामान्य पटाखों की तुलना में 50 से 60 फ़ीसदी तक कम एल्यूमीनियम का इस्तेमाल होता है। इसे संस्थान ने सेफ़ मिनिमल एल्यूमीनियम SAFAL का नाम दिया है।
- अरोमा क्रैकर्स पटाखों को जलाने से न सिर्फ़ हानिकारण गैस कम पैदा होगी बल्कि ये बेहतर खुशबू भी बिखेरेंगे।
एक नजर में
- नीरी एक सरकारी संस्थान है
- यह वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंघान परिषद (सीएसआईआर) के तहत काम करता है।
- ग्रीन पटाखे चार तरह के होते है।
- STAR क्रैकर से तात्पर्य सेफ़ थर्माइट क्रैकर होता है।
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