अमेरिका का विश्व का सबसे ताकतवर देश और उसके राष्ट्रपति को सबसे ताकतवर व्यक्ति माना जाता है। भारत की तरह ही अमेरिका भी एक लोकतांत्रिक देश है ऐसे में वोटिंग बहुत अहम हैै। लेकिन अमेरिका में चुनाव प्रक्रिया भारत से बिल्कुल अलग है। अमेरिका में राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए आज यानी 3 नवंबर को वोट डाले जा रहे है।
अमेरिका में जनता के वोटों से राष्ट्रपति का चुनाव नहीं होता है, बल्कि राष्ट्रपति को चुनने वाला इलेक्टोरल कॉलेज चुना जाता है। अमेरिका में जिस उम्मीदवार को ज्यादा वोट मिलते हैं, उसकी जीत हो, यह तय नहीं होता है, बल्कि उम्मीदवार इलेक्टोरल कॉलेज के वोट को जीतने की कोशिश करते हैं।
सभी राज्यों को उसकी आबादी के आधार पर इलेक्टोरल कॉलेज मिलता है। इनकी कुल संख्या 538 होती है और जीतने वाले कैंडिडेट को 270 या ज्यादा वोट जीतने होते हैं। जब लोग वोट डालते हैं तो वे देश का राष्ट्रपति नहीं अपनी स्टेट का प्रतिनिधि चुन रहे होते हैं। इस वर्ष House की 435 सीटों और Senate की 33 सीटों पर उम्मीदवार किस्मत आजमाएंगे।
अमेरिकी संविधान के आर्टिकल 2 के सेक्शन 1 में राष्ट्रपति चुनाव के बारे में बताया गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के लिए उसके पास ये तीन योग्यताएं अवश्य होनी चाहिाए—
अमेरिका में दो पार्टी का सिस्टम है पहली रिपब्लिकन और दूसरी डेमोक्रेट्स। दोनों पार्टियों को अपनी-अपनी तरफ से किसी एक व्यक्ति को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाना होता है। राष्ट्रपति चुनने से पहले भी एक लंबी प्रक्रिया है पार्टी का उम्मीदवार तय करने के लिए दो तरह से चुनाव किए जाते हैं पहला प्राइमरी और दूसरा कॉकसस. इसमें पार्टी का कोई भी कार्यकर्ता राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए खड़ा हो सकता है, उसे सिर्फ अपने समर्थकों का साथ चाहिए होता है
प्राइमरी चुनाव राज्य सरकारों के अंतर्गत कराए जाते हैं जोकि खुले और बंद दोनों रूप में कराए जाते है। यानी अगर राज्य सरकार चुनती है कि खुले रूप से चुनाव करेगी तो उसमें पार्टी के समर्थक के साथ-साथ आम जनता भी मतदान कर सकती है। वहीं अगर बंद रूप से मतदान होता है तो सिर्फ पार्टी से जुड़े समर्थक ही उम्मीदवार के लिए वोटिंग करते हैं।
कॉकसस सिस्टम में चुनाव पार्टी की तरफ से ही कराए जाते हैं इसमें पार्टी के समर्थक एक जगह इकट्ठे होते हैं और अलग-अलग मुद्दों पर चर्चा करते हैं। राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए खड़े हो रहे व्यक्ति की बात सुनते हैं उसके बाद उसी सभा में हाथ खड़े कर एक उम्मीदवार को समर्थन दे दिया जाता है हालांकि ऐसा बहुत ही कम राज्यों में होता है।
जब प्राइमरी इलेक्शन खत्म हो जाता है तो स्पष्ट हो जाता है कि दोनों पार्टियों की तरफ से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार कौन बनेगा। लेकिन इसका आधिकारिक ऐलान नेशनल कन्वेंशन में होता है, डेमोक्रेट्स का नेशनल कन्वेंशन हमेशा जुलाई में होता है और रिपब्लिकन पार्टी का अगस्त के महीने में।
अमेरिकी जनता हमेशा नवंबर के पहले सप्ताह में राष्ट्रपति पद के लिए मतदान करती है लेकिन यह मतदान सीधे उम्मीदवार के लिए नहीं किया जाता है। अमेरिकी जनता सबसे पहले स्थानीय तौर पर एक इलेक्टर का चुनाव करती है यह अमेरिकी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का प्रतिनिधि होता है।
इसके समूह को इलेक्टोरल कॉलेज कहा जाता है जिसमें कुल 538 सदस्य होते हैं जो अलग-अलग राज्यों से आते हैं। जब अमेरिकी जनता एक बार अपने इलेक्टर को वोट दे देती है तो उसका राष्ट्रपति पद के चुनाव में कोई हाथ नहीं रहता है। राष्ट्रपति बनने के लिए किसी भी उम्मीदवार को 270 से अधिक इलेक्टर्स के समर्थन की जरूरत होती है। जिसके पास 270 से अधिक का आंकड़ा होता है वह व्यक्ति 20 जनवरी को अमेरिका के राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति पद की शपथ लेता है।
प्राइमरी चुनाव के हिसाब से अमेरिका में सबसे ताकतवर राज्य कैलिफोर्निया है जिसके पास 415 डेलीगेट्स है, इसके बाद टेक्सस 228 और फिर नॉर्थ कैरोलिना 110 के आंकड़े के साथ आता है।
TheEdusarthi.com टेलीग्राम पर भी उपलब्ध है। यहां क्लिक करके आप सब्सक्राइब कर सकते हैं।
Subscribe to Notifications