भारत सरकार के केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन के अनुसार, केन्द्र सरकार विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित समय-सीमा से 1 वर्ष पहले ही अर्थात 2022 तक भारत को ट्रांस-फैट मुक्त बनाने का लक्ष्य प्राप्त करना चाहती है। विश्व खाद्य दिवस पर आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉक्टर हर्षवर्धन ने कहा कि कोविड महामारी के मद्देनज़र विश्व के समक्ष अभूतपूर्व चुनौतियों के कारण खाद्य, भोजन, स्वास्थ्य, रोग प्रतिरोधी क्षमता और टिकाऊपन पर नए सिरे से ध्यान बढ़ गया है। इस कार्यक्रम का आयोजन एफएसएसएआई के द्वारा किया गया।
तरल वनस्पति तेलों को अधिक ठोस रूप में परिवर्तित करने तथा खाद्य भंडारण एवं उपयोग अवधि में वृद्धि करने के लिये इन तेलों का हाइड्रोजनीकरण किया जाता है, इस प्रकार संतृप्त वसा या ट्रांस फैट का निर्माण होता है। केन्द्र सरकार इस वर्ष खाद्य आपूर्ति श्रंखला से ट्रांस फैट के उन्मूलन पर ध्यान केंद्रित कर रहीं है।
ट्रांस फैट आंशिक रूप से हाइड्रोजेनेटिड वनस्पति तेलों, बेक्ड और फ्राइड आहार नकली या कृत्रिम मक्खन, विभिन्न बेकरी उत्पादों में विषाक्त भोजन के रूप में मौजूद रहता है। भारत में असंक्रामक बीमारियों में वृद्धि का यह बड़ा कारण है। ये तले हुए या पके हुए खाद्य पदार्थों में भी पाए जाते हैं।
सांस की बीमारियों के लिए भी ट्रांस फैट जोखिम का कारक है। ट्रांस फैट के प्रयोग से मोटापा बढ़ता है तथा टाइप 2 मधुमेह के लिये मार्ग प्रशस्त होता है। हार्ट अटैक की संभावनाएँ भी बढ़ जाती हैं। कोविड-19 के दौरान जोखिम के इस कारक को दूर करना खासतौर से प्रासंगिक है क्योंकि सांस के रोगों से पीडित लोगों को कोरोना से मृत्यु का गंभीर जोखिम होता है।
भारत ने वसा को 2% तक सीमित करने के लिये दिसंबर 2018 में मसौदा नियमों को जारी किया था। FSSAI वर्ष 2022 तक चरणबद्ध तरीके से औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस फैट एसिड को 2% से कम करने की योजना पर काम कर रहा है। FSSAI ने औद्योगिक रूप से उत्पन्न ट्रांसफैट के दुष्प्रभावों के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिये मीडिया अभियान ‘हार्ट अटैक रिवाइंड’ की भी शुरुआत की है।
मई 2018 में WHO ने वर्ष 2023 तक वैश्विक खाद्य आपूर्ति से औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस फैट को खत्म करने के लिये एक व्यापक REPLACE योजना की शुरुआत की थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय पैमानों के अनुसार, Total Energy Intake में ट्रांस फैट्स की मात्रा 1 फीसदी से भी कम होनी चाहिये।
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