अमेरिकी वैज्ञानिक हार्वे जे आल्टर और चार्ल्स एम राइस तथा ब्रिटिश विज्ञानी माइकल हफटन को हेपेटाइटिस सी वायरस की खोज के लिए सोमवार को चिकित्सा के क्षेत्र के नोबेल पुरस्कार के लिए चुना गया है। नोबेल पुरस्कार समिति ने सोमवार को स्टाकहोम में इसकी घोषणा की। इनके अनुसंधान में रक्त से होने वाले हेपेटाइटिस संक्रमण के प्रमुख स्रोत का पता चला जिसके बारे में पहले खोजे गये हेपेटाइटिस ए और बी बिषाणुओं द्वारा पता नहीं चल सका था।
इन चिकित्सा वैज्ञानिकों की खोज से हेपेटाइटिस सी के लिए एंटीवायरल दवा के त्वरित विकास की दिशा में भी काम हुआ है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आकलन के अनुसार दुनियाभर में हेपेटाइिटस के सात करोड़ से अधिक मामले हैं और हर साल इससे चार लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हो जाती है। यह एक गंभीर बीमारी है और इससे यकृत कैंसर और सिरोसिस हो सकता है जिसमें यकृत प्रतिरोपण करना जरूरी हो जाता है। इस साल कोरोना वायरस महामारी के कारण चिकित्सा क्षेत्र के पुरस्कार का विशेष महत्व है जिसके कारण दुनियाभर के समाजों और अर्थव्यवस्थाओं के लिए चिकित्सा अनुसंधान की अहमियत रेखांकित हुई है।
हेपेटाइटिस ए जहां खानपान या पानी से फैलता है और इससे होने वाला गंभीर संक्रमण कुछ सप्ताह तक चल सकता है। वहीं हेपेटाइटिस बी और सी का संक्रमण रक्त से होता है।
हेपेटाइटिस सी एक वायरल इंफेक्शन है यह लिवर से संबंधित बीमारी है, इससे लिवर फेलियर या कैंसर भी हो सकता है। यह वायरस संक्रमित खून से फैलता है। यह बीमारी इसलिए भी खतरनाक है क्योंकि आधे से ज्यादा संक्रमित लोगों को यह पता ही नहीं होता है कि उन्हें यह बीमारी है, ऐसा इसलिए क्योंकि उनमें इसके लक्षण या तो दिखाई नहीं देते या सामने आने में 10 साल तक लग जाते हैं।
प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार में स्वर्ण पदक और एक करोड़ स्वीडिश क्रोनोर (11,18,000 अमेरिकी डॉलर से अधिक) की पुरस्कार राशि प्रदान की जाती है। पुरस्कार की शुरुआत 124 साल पहले स्वीडन के वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबेल ने के द्वारा की गई थी। चिकित्सा के अलावा हर वर्ष भौतिकी, रसायनशास्त्र, साहित्य, शांति और अर्थशास्त्र के क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य के लिए नोबेल पुरस्कार प्रदान किये जाते हैं।
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