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Nagorno-Karabakh War: आर्मेनिया-अजरबैजान में युद्ध के कारण

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वर्ष 1980— मई 1994 तक अर्मेनिया और अजरबैजान के बीच युद्ध चल चुका है। नगोरनो—काराबाख ऊंची—पहाड़ी एवं जंगली इलाका है। दक्षिण कॉकस के इलाक़े में स्थित एक क्षेत्र है। यह कॉकस पर्वत शृंखला की हीनकॉकस पहाडियों में आता है। इसका ज़्यादातर हिस्सा पहाड़ी है और वनों से भरपूर है। इसका क्षेत्रफल लगभग 4400 वर्ग किमी है। अज़रबैजान इस अपना हिस्सा मानता है और औपचारिक रूप से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी इसे उस देश का हिस्सा माना जाता है। यहाँ पर अज़रों की बजाए अर्मेनियाई लोगों की बहुतायत है और, आर्मीनिया की मदद से सन् 1991 के बाद से नागोर्नो-काराबाख़ अपने-आप को वास्तविकता में अज़रबैजान से अलग कर चुका है और स्वतन्त्र राष्ट्र की तरह अपने मामले संभालता है। उसने अपना नाम “नागोर्नो-काराबाख़ गणतंत्र” रखा हुआ है जिस से अज़रबैजान को सख़्त आपत्ति है। इस मतभेद को सुलझाने के लिए अज़रबैजान और आर्मीनिया की सरकारों में समय-समय पर बातचीत के दौर चलते रहते हैं लेकिन अभी युद्ध चल रहा है जिसके रूकने के आसार नहीं दिख रहें।

आर्मेनिया की सर्वाधिक जनसंख्या इसाई धर्म का पालन करती है जबकि अजरबैजान लगभग 96 प्रतिशत की अधिकतम जनसंख्या इस्लाम धर्म को मानने वाली है।

मध्‍य एशिया के दो देशों आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच व‍िवादित नागोर्नो-काराबाख को लेकर खूनी जंग जारी है। दोनों ही देशों की सेनाएं एक-दूसरे पर भीषण हमले कर रही हैं। किलर ड्रोन और सैन्‍य विमान तक का इस्तेमाल किया जा रहा है। सीरिया के आतंकी और तुर्की इस युद्ध में शामिल हो चुके है। दोनों देशों ने संयुक्त राष्ट्र और कई बड़े देशों के युद्ध विराम के आग्रह को दरकिनार कर दिया है। जारी युद्ध के कारण काफी जान—माल का नुकसान होने की खबर है। दोनों देश इस क्षेत्र पर अपना कब्जा करने की फिराक में है।

अंतरराष्ट्रीय समुदाय के चिंता के कारण

अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चिंता यह है कि यदि दो देशों की इस लड़ाई में रूस जैसी महाशक्तियां शामिल हो जाती हैं, तो विश्व युद्ध जैसे हालात पैदा हो जाएंगे। क्योंकि ये दोनों क्षेत्र रूस की सेवियत संघ का हिस्सा रहें है। अमेरिका समेत कई देशों ने अर्मेनिया और अजरबैजान से युद्ध समाप्त करने के अपील की है। सीरिया के आतंकी और तुर्की एवं पाकिस्तान प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से शामिल हो चुके है। इस जंग में अब रूस, तुर्की, फ्रांस, ईरान और इस्राइल प्रत्यक्ष रूप से भी शामिल होने का खतरा बढ़ गया है।

 

 

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