भारतीय स्वतंत्रता के आजादी के नायकों में से एक महात्मा गांधी की जयंती आज 2 अक्टूबर को मनाई जा रहीं है। इन्हें सत्य एवं अहिंसा का सबसे बड़ा पुजारी माना जाता था। आजादी के आदोलनों में इन्होंने सत्य, अहिंसा, समाचारपत्रों, अनशन को अपना हथियार बनाया था। भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे।
सबसे पहले महात्मा गांधी जी ने प्रवासी वकील के रूप में दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के लोगों के नागरिक अधिकारों के लिये संघर्ष हेतु सत्याग्रह किया था। 1915 में उनकी भारत वापसी हुई। उसके बाद उन्होंने यहाँ के किसानों, मजदूरों और शहरी श्रमिकों को अत्यधिक भूमि कर और भेदभाव के विरुद्ध आवाज उठाने के लिये एकजुट किया। गाँधी जी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर लगाये गये नमक कर के विरोध में 1930 में नमक सत्याग्रह और इसके बाद 1942 में अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन से खासी प्रसिद्धि प्राप्त की। दक्षिण अफ्रीका और भारत में अनेक बार उन्हें जेल की सजा भी हुई।
मोहनदास करमचन्द गान्धी का जन्म वर्तमान गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर 2 अक्टूबर सन 1869 को हुआ था। उनके पिता करमचन्द गान्धी सनातन धर्म की पंसारी जाति से संबंधित थे और ब्रिटिश राज के समय काठियावाड़ की एक छोटी सी रियासत पोरबंदर के दीवान/प्रधान मन्त्री थे। उनकी माता पुतलीबाई परनामी वैश्य समुदाय की थीं। पुतलीबाई करमचन्द की चौथी पत्नी थी। उनकी पहली तीन पत्नियाँ प्रसव के समय मर गयीं थीं।
गुजराती भाषा में गान्धी का अर्थ है पंसारी जबकि हिन्दी भाषा में गन्धी का अर्थ है इत्र फुलेल बेचने वाला जिसे अंग्रेजी में परफ्यूमर कहा जाता है।
पोरबंदर से उन्होंने मिडिल और राजकोट से हाई स्कूल किया। दोनों परीक्षाओं में शैक्षणिक स्तर वह एक औसत छात्र रहे। मैट्रिक के बाद की परीक्षा उन्होंने भावनगर के शामलदास कॉलेज से कुछ परेशानी के साथ उत्तीर्ण की। जब तक वे वहाँ रहे अप्रसन्न ही रहे क्योंकि उनका परिवार उन्हें बैरिस्टर बनाना चाहता था। महात्मा गांधी यूनिवर्सिटी कॉलेज लन्दन में कानून की पढाई करने और बैरिस्टर बनने के लिये इंग्लैंड चले गये।
विदेश में भी रहकर वे स्वंय शाकाहारी थे एवं शाकाहारी पर जोर दिया करते थे।
इंग्लैंड और वेल्स बार एसोसिएशन में वापस बुलावे पर वे भारत लौट आये थे लेकिन बम्बई में वकालत करने में उन्हें कोई सफलता नहीं मिली।
दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी को भारतीयों पर भेदभाव का सामना करना पड़ा था। आरम्भ में उन्हें प्रथम श्रेणी कोच की वैध टिकट होने के बाद तीसरी श्रेणी के डिब्बे में जाने से इन्कार करने के लिए ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया था। अफ्रीका में कई होटलों को उनके लिए वर्जित कर दिया गया। इसी तरह ही बहुत सी घटनाओं में से एक यह भी थी जिसमें अदालत के न्यायाधीश ने उन्हें अपनी पगड़ी उतारने का आदेश दिया था जिसे उन्होंने नहीं माना। ये सारी घटनाएँ महात्मा गांधी के जीवन में एक मोड़ बन गईं और विद्यमान सामाजिक अन्याय के प्रति जागरुकता का कारण बनीं तथा सामाजिक सक्रियता की व्याख्या करने में मददगार सिद्ध हुईं। दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर हो रहे अत्याचार को देखते हुए गांधी जी ने अंग्रेजी साम्राज्य के अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आवाज बुलंद किए।
बिहार के चंपारण जिले में महात्मा गांधी की अगुवाई में 1917 का चंपारण आंदोलन भारत का पहला नागरिक अवज्ञा आंदोलन था। इस आंदोलन के जरिये महात्मा गांधी ने लोगों के विरोध को सत्याग्रह के माध्यम से लागू करने का पहला प्रयास किया जो ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आम जनता के अहिंसक प्रतिरोध पर आधारित था। चंपारण के किसान नेता राजकुमार शुक्ल के आमंत्रण पर वे चंपारण गए थे। यह आदोलन जबरन नील की खेती कराए जाने के विरोध में था। जो सफल रहा।
गांधी जी ने असहयोग, अहिंसा तथा शांतिपूर्ण आंदोलन को अंग्रेजों के खिलाफ़ शस्त्र/हथियार के रूप में उपयोग किया। अंग्रेजों द्वारा बनाए वस्त्रों की अपेक्षा हमारे अपने लोगों द्वारा हाथ से बनाई गई खादी पहनें के लिए जनता का प्रेरित करत थे असहयोग आंदोलन को सभी वर्गो से समर्थन मिला।यह आंदोलन अपने शीर्ष पर पहुँचा वैसे फरवरी 1922 ई. में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के पास चौरा—चौरी में थाने पर हमले के बाद इस आंदोलन को वापस ले लिया गया। जिसकी काफी निंदा भी हुई। 10 मार्च, 1922 को राजद्रोह के केस में गांधी जी पर मुकदमा चलाया गया जिसमें उन्हें छह साल कैद की सजा सुनाकर जेल भेज भेद दिया गया। मात्र 2 साल की सजा के बाद ही फरवरी 1924 में आंत के ऑपरेशन के लिए रिहा कर दिया गया।
इरविन गांधी की सन्धि मार्च 1931 में हस्ताक्षर हुई थी। सविनय अवज्ञा आंदोलन को बंद करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने सभी राजनैतिक कैदियों को रिहा करने के लिए अपनी सहमति दे दी। इस समझौते के परिणामस्वरूप गांधी को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में लंदन में आयोजित होने वाले गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमन्त्रित किया गया।
1932 में बाबासाहेब अम्बेडकर के एवं महात्मा गांधी के बीच एक समझौता हुआ जिसे पूणा पैक्ट के नाम से जाना जाता है। गांधी जी ने अछूत समझे जाने वाले लोगों को हरिजन का नाम दिया जिन्हें वे भगवान की संतान मानते थे। डॉ॰ अम्बेडकर ने महात्मा गांधी द्वारा हरिजन शब्द का उपयोग करने पर असहमत थे।
आरम्भ में गांधी जी ने अंग्रेजों के प्रयासों को अहिंसात्मक नैतिक सहयोग देने का पक्ष लिया किंतु दूसरे कांग्रेस नेताओं ने युद्ध में जनता के प्रतिनिधियों के परामर्श लिए बिना इसमें एकतरफा शामिल किए जाने का विरोध किया। कांग्रेस के सभी चयनित सदस्यों ने सामूहिक तौर पर अपने पद से इस्तीफा दे दिया। सभी कांग्रेसियों और भारतीयों को अहिंसा के साथ करो या मरो/डू ऑर डाय का नारा दिया।
महात्मा गांधी के निजी सचिव महादेव देसाई थे। 22 फरवरी 1944 को उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी का देहांत हो गया।
भारत छोड़ो आंदोलन में गिरफ्तार होने के 6 सप्ताह के बाद ही महात्मा गांधी मलेरिया बिमारी के शिकार हो गएजिसके बाद उन्हें खराब स्वास्थ्य और जरूरी उपचार के कारण 6 मई 1944 को दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति से पूर्व ही रिहा कर दिया गया था। भारत छोड़ो आंदोलन को अपने उद्देश्य में आशिंक सफलता ही मिली। युद्ध के अंत में अंग्रेज सरकार ने स्पष्ट संकेत दे दिया था कि संत्ता का हस्तांतरण कर उसे भारतीयों के हाथ में सौप दिया जाएगा। इस समय गांधी जी ने आंदोलन को बंद कर दिया जिससे कांग्रेसी नेताओं सहित लगभग एक लाख राजनैतिक बंदियों को रिहा कर दिया गया।
सरदार पटेल ने गांधी जी को समझाने का प्रयास किया कि नागरिक अशांति वाले युद्ध को रोकने का यही एक उपाय है। मज़बूर गांधी ने अपनी अनुमति दे दी। दिल्ली में आमरण अनशन आरंभ किया जिसमें साम्प्रदायिक हिंसा को सभी के लिए तत्काल समाप्त करने और पाकिस्तान को 55 करोड़ रू0 का भुगतान करने के लिए कहा गया था। जबकि भारत ने यह राशि देने से इंकार दिया था। सरदार पटेल जैसे कद्दावर नेताओं को लगता था कि पाकिस्तान इस धन का उपयोग भारत के खिलाफ़ जंग छेड़ने में कर सकता है। महात्मा गांधी ने किसी की भी बात का मानने से इंकार कर दिया जिससे सरकार को पाकिस्तान को रकम देनी पड़ी।
30 जनवरी 1948 को बिरला हाउस में नाथूराम गोडसे द्वारा महात्मा गांधी को गोली मारकर हत्या कर दी गई। मरते समय महात्मा गांधी ने हे राम का संबोधन किया था। गोड़से और उनके सहयागी नारायण आप्टे को बाद में केस चलाकर सजा दी गई तथा नवंबर 1951 में फांसी दे दी गई। राज घाट, नई दिल्ली में महात्मा गांधी के स्मारक पर हे राम लिखा हुआ है।
सत्य
गांधी जी ने अपना जीवन सत्य, या सच्चाई की व्यापक खोज में समर्पित कर दिया। उन्होंने इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपनी स्वयं की कमियों और खुद पर प्रयोग करते हुए सीखने की कोशिश की। उन्होंने अपनी आत्मकथा को सत्य के प्रयोग का नाम दिया था। वे कहा करत थे कि भगवान ही सत्य है जबकि बाद में उन्होंने अपने ही कथन को सत्य ही भगवान है में बदल दिया।
अहिंसा
महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा द स्टोरी ऑफ़ माय एक्सपेरिमेंट्स विथ ट्रुथ में दर्शन और अपने जीवन के मार्ग का वर्णन किया है। जब मैं निराश होता हूं तब मैं याद करता हूं कि हालांकि इतिहास सत्य का मार्ग होता है किंतु प्रेम इसे सदैव जीत लेता है। यहां अत्याचारी और हत्यारे भी हुए हैं और कुछ समय के लिए वे अपराजय लगते थे किंतु अंत में उनका पतन ही होता है -इसका सदैव विचार करें।
मृतकों, अनाथ तथा बेघरों के लिए इससे क्या फर्क पड़ता है कि स्वतंत्रता और लोकतंत्र के पवित्र नाम के नीचे संपूर्णवाद का पागल विनाश छिपा है।
एक आंख के लिए दूसरी आंख पूरी दुनिया को अंधा बना देगी।
मरने के लिए मैरे पास बहुत से कारण है किंतु मेरे पास किसी को मारने का कोई भी कारण नहीं है
विज्ञान का युद्ध किसी व्यक्ति को तानाशाही , शुद्ध और सरलता की ओर ले जाता है। अहिंसा का विज्ञान अकेले ही किसी व्यक्ति को शुद्ध लोकतंत्र के मार्ग की ओर ले जा सकता है।
प्रेम पर आधारित शक्ति सजा के डर से उत्पन्न शक्ति से हजार गुणा अधिक और स्थायी होती है।
जहां डरपोक और हिंसा में से किसी एक को चुनना हो तो मैं हिंसा के पक्ष में अपनी राय दूंगा।
वीरता केवल अच्छे निशाने वालों में ही नहीं होती है बल्कि मृत्यु को हरा देने वालों में तथा अपनी छातियों को गोली खाने के लिए सदा तैयार रहने वालों में भी होती है।
हिंदू धर्म, इसे जैसा मैंने समझा है, मेरी आत्मा को पूरी तरह तृप्त करता है, मेरे प्राणों को आप्लावित कर देता है जब संदेह मुझे घेर लेता है, जब निराशा मेरे सम्मुख आ खड़ी होती है, जब क्षितिज पर प्रकाश की एक किरण भी दिखाई नहीं देती, तब मैं ‘भगवद्गीता’ की शरण में जाता हूँ और उसका कोई-न-कोई श्लोक मुझे सांत्वना दे जाता है, और मैं घोर विषाद के बीच भी तुरंत मुस्कुराने लगता हूं। मेरे जीवन में अनेक बाह्य त्रासदियां घटी है और यदि उन्होंने मेरे ऊपर कोई प्रत्यक्ष या अमिट प्रभाव नहीं छोड़ा है तो मैं इसका श्रेय ‘भगवद्गीता’ के उपदेशों को देता हूँ। फिर भी महात्मा गांधी सभी धर्मो का सम्मान करते थे।
गाँधी जी एक लेखक भी थे। दशकों तक वे अनेक पत्रों का संपादन कर चुके थे जिसमे हरिजन, इंडियन ओपिनियन, यंग इंडिया आदि सम्मिलित हैं। जब वे भारत में वापस आए तब उन्होंने ‘नवजीवन’ नामक मासिक पत्रिका निकाली। बाद में नवजीवन का प्रकाशन हिन्दी में भी हुआ। इसके अलावा उन्होंने समाचारपत्रों में अनेकों लेख लिखें।
गाँधी जी द्वारा मुख्य रूप से 4 पुस्तके लिखी गई है जो इस प्रकार है— हिंद स्वराज, दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास, सत्य के प्रयोग (आत्मकथा), तथा गीता पदार्थ कोश सहित संपूर्ण गीता की टीका। गाँधी जी आमतौर पर गुजराती में लिखते थे, परन्तु अपनी किताबों का हिन्दी और अंग्रेजी में भी अनुवाद करते या करवाते थे।
2 अक्टूबर महात्मा गाँधी का जन्मदिन है इसलिए गाँधी जयंती के अवसर पर भारत में राष्ट्रीय अवकाश होता है 2007 से संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 2 अक्टूबर को विश्व अहिंसा दिवस मनाया जाता है।
हर वर्ष 30 जनवरी को शहीद दिवस मनाया जाता है।
भारत सरकार हर वर्ष उल्लेखनीय सामाजिक कार्यकर्ताओं, विश्व के नेताओं और नागरिकों को महात्मा गाँधी शान्ति पुरस्कार से पुरस्कृत करती है। दक्षिण अफ्रीकी नेल्सन मंडेला इस पुरूस्कार को पाने वाले पहले गैर-भारतीय थे।
गाँधी को कभी भी शान्ति का नोबेल पुरस्कार प्राप्त नहीं हुआ, जबकि 5 बार इस पुरस्कार के लिए मनोनीत किया गया था।
रविंद्रनाथ टैगोर ने मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा की उपाधि 12अप्रैल 1919 को अपने एक लेख मे दी थी। सुभाष चन्द्र बोस ने 6 जुलाई 1944 को रंगून रेडियो से गांधी जी के नाम जारी प्रसारण में उन्हें राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित करते हुए आज़ाद हिन्द फौज़ के सैनिकों के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ माँगीं थीं।
जॉन रस्किन की अन्टू दिस लास्ट पुस्तक पढ़ने के बाद उन्होंने अपने जीवन शैली में परिवर्तन करने का फैसला किया तथा एक समुदाय बनाया जिसे अमरपक्षी अवस्थापन कहा जाता था।
*जुलु विद्रोह में अंग्रेजों का साथ देना
*दोनो विश्वयुद्धों में अंग्रेजों का साथ देना
*खिलाफत आन्दोलन जैसे साम्प्रदायिक आन्दोलन को राष्ट्रीय आन्दोलन बनाना
*अंग्रेजों के विरुद्ध सशस्त्र क्रान्तिकारियों के हिंसात्मक कार्यों की निन्दा करना
*गांधी-इरविन समझौता – जिससे भारतीय क्रन्तिकारी आन्दोलन को बहुत धक्का लगा
*भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर सुभाष चन्द्र बोस के चुनाव पर नाखुश होना
*चौरी चौरा काण्ड के बाद असहयोग आन्दोलन को अचानक रोक देना
*भारत की स्वतंत्रता के बाद सरदार पटेल की बजाय नेहरू को प्रधानमंत्री का दावेदार बनाना
*स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान को 55 करोड़ रूपये देने की जिद पर अनशन करना
*भीमराव आम्बेडकर, महात्मा गांधी को जाति प्रथा का समर्थक समझते थे।
महात्मा गाँधी का मानना था कि अगर एक व्यक्ति समाज सेवा में कार्यरत है तो उसे साधारण जीवन की ओर ही बढ़ना चाहिए जिसे वे ब्रह्मचर्य के लिए आवश्यक मानते थे। वे अनावश्यक खर्च, साधारण जीवन शैली को अपनाने की वकालत करते थे।
*गांधी की पहली बड़ी उपलब्धि 1917 में चंपारण सत्याग्रह और खेड़ा सत्याग्रह में मिली।
*प्रति वर्ष 2 अक्टूबर को उनका जन्म दिन भारत में गांधी जयंती के रूप में और पूरे विश्व में अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के नाम से मनाया जाता है।
*महात्मा गांधी को नोबेल पुरस्कार के लिए 5 बार नामित किए जाने के बावजूद यह पुरस्कार नहीं मिला है।
*हर वर्ष 30 जनवरी को शहीद दिवस मनाया जाता है।
*इस वर्ष महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाई जा रहीं है।
*इन्हें कैसर ए हिन्द की उपाधि दी गई थी जिसे जलियावाला बाग कांड के बाद वापस कर दी थी।
*महात्मा गांधी का पुरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था।