पहाड़ों, पर्वतों, जंगलों से होते हुए समतल मैदानों में निरंतर बहने वाली धारा को नदी कहा जाता है। इसका स्रोत प्रायः कोई झील, हिमनद, झरना या बारिश का पानी होता है तथा यह किसी सागर, खाड़ी, समुद्र या विशाल जल क्षेत्र में जाकर मिल जाती है। नदी शब्द संस्कृत के नद्यः से आया है। संस्कृत में इसे सरिता कहा जाता है।
यह नदी नेपाल और उत्तरी भारत खासकर बिहार में बहती है। जिसमें माउंट एवरेस्ट के आसपास का क्षेत्र शामिल हैं। इसकी कुछ प्रारंभिक धाराएँ नेपाल की सीमा के पार तिब्बत से निकलती है। भारत-नेपाल सीमा से लगभग 48 किमी उत्तर में कोसी में कई प्रमुख सहायक नदियाँ मिलती हैं और यह संकरे छत्र महाखड्ड से शिवालिक की पहाड़ियों से होते हुए दक्षिण दिशा में मुड़ जाती है। इसके बाद कोसी नदी उत्तर भारत के बिहार राज्य में बहते हुए गंगा नदी में मिल जाती है। यह लगभग 724 किमी की यात्रा के बाद केरूसेला, पूर्णिया के पास गंगा में मिल जाती है। कोसी नदी गंगा की सहायक नदी है
कोसी नदी हिमालय पर्वतमाला में प्रायः 7000 मीटर की ऊँचाई से अपनी यात्रा शुरू करती है जिसका ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र नेपाल तथा तिब्बत में पड़ता है। दुनिया का सबसे ऊँचा शिखर माउंट एवरेस्ट तथा कंचनजंघा जैसी पर्वतमालाएं कोसी के जलग्रहण क्षेत्र में आती हैं। नेपाल में इसे सप्तकोसी के नाम से जानते हैं जो कि सात नदियों इन्द्रावती, सुनकोसी या भोट कोसी, तांबा कोसी, लिक्षु कोसी, दूध कोसी, अरुण कोसी और तामर कोसी के सम्मिलित प्रवाह से निर्मित होती है। इनमें पहली पाँच नदियों के संयोग से सुनकोसी का निर्माण होता है और यह पश्चिम से पूर्व की ओर बहती है। यह नदियाँ गौरी शंकर शिखर तथा मकालू पर्वतमाला से होकर बहती हैं। छठी धारा अरुण कोसी की है जिसके जलग्रहण क्षेत्र में सागरमाथा (माउन्ट एवरेस्ट) स्थित है। सातवीं धारा पूरब से पश्चिम की ओर बहने वाली तामर कोसी है जो कि कंचनजंघा पर्वतमाला से पानी लाती है। इस तरह सुनकोसी, अरुण कोसी तथा तामर कोसी नेपाल के धनकुट्टा जिले में त्रिवेणी नाम के स्थान पर आकर मिल जाती हैं और यहीं से इसका नाम सप्तकोसी, महाकोसी या कोसी हो जाता है। त्रिवेणी पहाड़ों के बीच स्थित है। चतरा नामक स्थान से कोसी मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है।
हिन्दू ग्रंथों में इसे कौशिकी नाम से उद्धृत किया गया है। कहा जाता है कि विश्वामित्र ने इसी नदी के किनारे ऋषि का दर्ज़ा पाया था। वे कुशिक ऋषि के शिष्य थे और उन्हें ऋग्वेद में कौशिक भी कहा गया है। सात धाराओं से मिलकर सप्तकोशी नदी बनती है जिसे स्थानीय रूप से कोसी कहा जाता है। महाभारत में भी इसका ज़िक्र कौशिकी नाम से मिलता है।
कोसी नदी पर सन 1958 एवं 1962 के बीच एक बाँध बनाया गया। यह बाँध भारत-नेपाल सीमा के पास नेपाल में स्थित है। इसमें पानी के बहाव के नियंत्रण के लिये 52 गेट बनाएं गए है। जिन्हें नियंत्रित करने का कार्य भारत सरकार के अधिकारियों द्वारा किया जाता है।
कोसी नदी की अपनी कोई स्थायी धारा नहीं थी क्योंकि तटबंध बनाकर नदी की धारा को नियंत्रित किया गया। इसकी धारा बदल दी गई इसलिए बिहार में प्रलयंकारी बाढ़ कि स्थिति हर साल बनी रहती है। इतने बड़े पैमाने पर साल दर साल बाढ़ आने की मूल वजह इसका मार्ग बदलते रहना है। इन्हीं कारणों से कोसी नदी को बिहार का शोक कहा जाता है।
आज़ादी के बाद भारत सरकार ने नेपाल के साथ समझौता कर के 1954 में तटबंध बनाने का फ़ैसला किया।
बरका क्षेत्र में स्थित बाँध बाढ़ पर नियंत्रण रखता है।
बाढ़ के मैदानों में सिंचाई की सुविधा प्रदान करता है।
पनबिजली परियोजनाएं चलाई जाती है।
मछली पालन केंद्रों को आधार प्रदान करता है।
कोसी बेसिन की बलुआ मिट्टी में व्यापक पैमाने पर मक्का की खेती की जाती है।
लंबे समय से कोसी नदी अपनी विनाशकारी बाढ़ों के लिए कुख्यात रही है, क्योंकि इसका पानी चौबीस घंटो में नौ मीटर तक बढ़ जाता है।
उत्तरी बिहार के विशाल क्षेत्र तक निवास या कृषि के लिए असुरक्षित हो जाते हैं पर तटबंध की मद्द से इसे बचाया गया है।
तटबंध बनाते समय अभियंताओं ने अनुमान किया था कि यह नौ लाख घन फ़ुट प्रति सेकेंड (क्यूसेक) पानी के बहाव को बर्दाश्त कर सकेगा और तटबंध की आयु 25 वर्ष आँकी गई थी ।
*कोसी पर बना तटबंध 7 बार टूट चुका है और इस बाढ़ से काफ़ी तबाही भी हुई है।
*तटबंध टूटने का एक बड़ा कारण कोसी नदी की तलहटी में तेज़ी से गाद जमना है।
*इसके कारण जलस्तर बढ़ता है और तटबंध पर दबाव पड़ता है।
*वर्ष 2008 में आए बाढ़ की विभीषका को बिहार आजतक नहीं भूल पाया है।
*पिछले 250 वर्षों में 120 किमी का विस्तार कर चुकी है।
*कोसी नदी का उद्गम स्थल नेपाल के सप्तकौशिकी में है।
*यह नदी उत्तर बिहार के मिथिला क्षेत्र की संस्कृति का पालना भी है।
*कोशी के आसपास के क्षेत्रों को इसी के नाम पर कोशी कहा जाता है।