दुनिया का लगभग हर एक काम एक अच्छा इंजीनियर कर सकता है। जहां आम इंसान थक—हार जाता है वहां एक इंजीनियर अपनी बुद्धि के बल पर उसे पूरा कर देता है। नई दिल्ली में आयोजित किए गए गेम्स में निर्माण कार्य में बाधा होने पर भारतीय सेना की इंजीनियरिंग कोर ने मात्र कुछ दिनों में सफलतापूर्वक पूरा कर लिया था। इससे भारत के इंजीनियरों की काबिलियत को समझा जा सकता है।
आज इंजीनियर्स डे/अभियंता दिवस है । देश के विकास में इंजीनियर्स का बहुत बड़ा रोल है। आपदा से लेकर निर्माण तक इंजीनियर्स के बिना कुछ भी नहीं हो सकता। देश के विकास के धूरि इंजीनियर्स ही हैं। भारत रत्न सर डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के जन्मदिवस के रूप में इसे भारत में मनाया जाता है। मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का जन्म मैसूर में 15 सितम्बर 1861 को हुआ था। विश्वेश्वरैया भारतीय सिविल इंजीनियर, विद्वान और राजनेता थे।
1883 में पूना के साइंस कॉलेज से इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद विश्वेश्वरैया को तत्काल ही सहायक इंजीनियर पद पर सरकारी नौकरी मिल गई थी। वे मैसूर के 19वें दीवान थे और 1912 से 1918 तक रहे। मैसूर में किए गए उनके कामों के कारण उन्हें मॉर्डन मैसूर का पिता कहा जाता है। इस मौके पर इंजीनियरिंग कॉलेजों में स्टूडेंट्स को उनके अचीवमेंट्स पर अवॉर्ड दिए जाते हैं। 1955 में विश्वेश्वरैया जी को भारत का सबसे बड़ा सम्मान “भारत रत्न” से सम्मानित किया गया था।
*क्या आप 5 के बीच में चार लिख सकते हैं
फार्मो के स्टूडेंट्स ने कहा, अच्छा मजाक है
एमबीए के स्टूडेंट्स ने कहा, असंभव
इंजीनियरिंग के स्टूडेंट्स ने कहा, F(IV)E
साइंस का मतलब है जानना और इंजीनियरिंग का मतलब है करना – हेनरी पेटोस्की
आर्किटेक्ट वहां से शुरू होता है, जहां इंजीनियरिंग खत्म होती है: वाल्टर ग्रुप्स
सर मोक्षगुंडम विश्वेशवरैया का जन्म 15 सितंबर 1860 को मैसूर के कोल्लार जिलें में हुआ था। ये भारत के महान इंजीनियर और राजनयिक थे। इनके पिता का नाम श्रीनिवास शास्त्री तथा माता का नाम वेंकाचम्मा था। पिता संस्कृत विषय के विद्वान थे। विश्वेश्वरैया ने प्रारंभिक शिक्षा गांव से ही से ही पूरी की। आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने वर्तमान कर्नाटक राज्य की राजधानी बंगलूरू के सेंट्रल कॉलेज में प्रवेश लिया। लेकिन यहां उनके पास धन का अभाव था। जिसकी पूर्ति के लिए उन्होंने ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। विश्वेश्वरैया ने 1881 में बीए की परीक्षा टॉप रैंक के साथ पास की। इसके बाद मैसूर सरकार की मदद से इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए पूणे के एक कॉलेज में एडमिशन लिया। 1883 की एलसीई व एफसीई (वर्तमान में इसे बीई/बैचलर आफ इंजीनियरिंग के नाम से जाना जाता है।) की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करके अपनी योग्यता का परिचय दिया। इसी उपलब्धि के चलते महाराष्ट्र सरकार ने इन्हें नासिक में सहायक इंजीनियर के पद पर नियुक्त किया गया।
दक्षिण भारत के मैसूर को एक विकसित एवं समृद्धशाली बनाने में डॉ विश्वेशवरैया का अभूतपूर्व योगदान है। जब देश स्वंतत्र नहीं हुआ था, तब कृष्णराजसागर बांध, भद्रावती आयरन एंड स्टील वर्क्स, मैसूर संदल ऑयल एंड सोप फैक्टरी, मैसूर विश्वविद्यालय, बैंक ऑफ मैसूर समेत अन्य कई महान उपलब्धियां डॉ विश्वेशवरैया ने अपनी कड़ी मेहनत एवं सूझबुझ से संपन्न कराई। इसीलिए डॉ विश्वेशरैया को वर्तमान कर्नाटक का भागीरथी कहा जाता है। जब वह केवल 32 वर्ष के थे, उन्होंने सिंधु नदी से सुक्कुर कस्बे को पानी की पूर्ति भेजने का प्लान तैयार किया। इसके लिए डॉ विश्वेशवरैया ने एक नए ब्लॉक सिस्टम को ईजाद किया। उन्होंने स्टील के दरवाजे बनाए जो कि बांध से पानी के बहाव को रोकने में मदद करता था। उनके इस सिस्टम की प्रशंसा ब्रिटिश अधिकारियों ने की। आज यह प्रणाली पूरे विश्व में प्रयोग में लाई जा रही है। विश्वेश्वरैया ने मूसा व इसा नामक दो नदियों के पानी को बांधने के लिए भी प्लान तैयार किए। इसके बाद उन्हें मैसूर का चीफ इंजीनियर नियुक्त किया गया।
कृष्णराजसागर बांध के निर्माण के दौरान देश में सीमेंट नहीं बनता था, इसके लिए इंजीनियरों ने मोर्टार तैयार किया जो सीमेंट से ज्यादा मजबूत था। 1912 में विश्वेश्वरैया को मैसूर के महाराजा ने दीवान यानी मुख्यमंत्री नियुक्त कर दिया।
पहला फर्स्ट ग्रेड कॉलेज (महारानी कॉलेज) खुलवाने का श्रेय भी विश्वेश्वरैया को ही जाता है। बैंक ऑफ मैसूर की स्थापना इनके द्वारा ही करवाई गई। बंगलूर स्थित हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स तथा मुंबई की प्रीमियर ऑटोमोबाइल फैक्टरी उन्हीं के प्रयासों का परिणाम है। 1947 में वह आल इंडिया मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन के अध्यक्ष बने। उड़ीसा की नदियों की बाढ़ की समस्या से निजात पाने के लिए उन्होंने एक रिपोर्ट पेश की। इसी रिपोर्ट के आधार पर हीराकुंड तथा अन्य कई बांधों का निर्माण हुआ।
एक बार डॉ विश्वेशवरैया ट्रेन से कही जा रहे थे परिस्थितियों को भांपते हुए उन्होंने जंजीर खिच दी/चैन पुलिंग कर दी। तेज रफ्तार में दौड़ती वह गाड़ी तत्काल रुक गई। सभी यात्री भला-बुरा कहने लगे। थोड़ी देर में गार्ड भी आ गया और उसने पूछा, ‘जंजीर किसने खींची है?’ उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, ‘मैंने खींची है।’ कारण पूछने पर उसने बताया, ‘मेरा अनुमान है कि यहां से लगभग एक फर्लांग की दूरी पर रेल की पटरी उखड़ी हुई है।’ गार्ड ने पूछा, ‘आपको कैसे पता चला?’ वह बोला, ‘श्रीमान! मैंने अनुभव किया कि गाड़ी की स्वाभाविक गति में अंतर आ गया है। पटरी से गूंजने वाली आवाज की गति से मुझे खतरे का आभास हो रहा है।’ गार्ड उस व्यक्ति को साथ लेकर जब कुछ दूरी पर पहुंचा तो यह देखकर दंग रहा गया कि वास्तव में एक जगह से रेल की पटरी के जोड़ खुले हुए हैं और सब नट-बोल्ट अलग बिखरे पड़े हैं। दूसरे यात्री भी वहां आ पहुंचे। जब लोगों को पता चला कि उस व्यक्ति की सूझबूझ के कारण उनकी जान बच गई है तो वे उसकी प्रशंसा करने लगे। गार्ड ने पूछा, ‘आप कौन हैं?’ उस व्यक्ति ने कहा, ‘मैं एक इंजीनियर हूं और मेरा नाम है डॉ॰ एम. विश्वेश्वरैया। उस समय तक देश में डॉ॰ विश्वेश्वरैया की ख्याति फैल चुकी थी। लोग उनसे क्षमा मांगने लगे। डॉ॰ विश्वेश्वरैया का उत्तर था आप सब ने मुझे जो कुछ भी कहा होगा, मुझे तो बिल्कुल याद नहीं है।
1928 में पहली बार रूस ने इस बात को समझते हुए प्रथम पंचवर्षीय योजना तैयार की थी। लेकिन विश्वेश्वरैया ने आठ वर्ष पहले ही 1920 में अपनी किताब रिकंस्ट्रक्टिंग इंडिया में इस तथ्य पर जोर दिया था। इसके अलावा 1935 में प्लान्ड इकॉनामी फॉर इंडिया भी लिखी। 98 वर्ष की उम्र में भी वह प्लानिंग पर एक किताब लिख रहे थे।