एक ऐसा वीर क्रांतिकारी जिसने जलियावाला बाग नरसंहार का बदला लेने के लिए अंग्रेजों के घर लंदन जाकर बदला लिया। दूसरे ऐसे भारतीय क्रांतिकारी जिन्हें भारत के बाहर फांसी दी गई।
सरदार उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में में हुआ था। इनके बचपन का नाम शेर सिंह था। छोटी उम्र में ही इनके माता—पिता का देहांत हो गया। भाई मुक्ता सिंह के साथ इन्हें खालसा अनाथालय में शरण लेनी पड़ी। अनाथालय में इनका नाम उधम सिंह पड़ा और भाई का नाम साधु सिंह। जब जलियावाला बाग हत्याकांड हुआ तब ये मैट्रिक की परीक्षा पास कर चुके थे। इसी समय ये आजादी के आंदोलन में कुद पड़े।
1924 में ये गदर पार्टी से जुड़ गए। इन्होंने कई देशों में क्रांतिकारियों के साथ काम भी किया। भगत सिंह के कहने ये 1927 में हथियार एवं गोला—बारूद लेकर भारत आ गए। अवैध हथियार रखने के जुर्म में इन्हें गिरफ्तार कर, मुकदमा चलाने के बाद 5 साल की सजा सुनाई गई। जेल से छूटने के बाद उनपर अंग्रेज प्रशासन की निगरानी जारी रही। तभी वे पंजाब से कश्मीर चले गए फिर जर्मनी और लंदन। जनरल डॉयर बिमारी के कारण इस समय तक मर चुका था। जहां पर जलियावाला बाग हत्याकांड के हत्यारे पंजाब के तत्कालीन गवर्नर माइकल ओ.डवॉयर को सजा—ए—मौत दे दी।
जलियावाला बाग हत्याकांड
13 अप्रैल 1919 को पंजाब के अमृतसर में जलियावाला बाग में जनरल डॉयर के आदेश पर शांति से सम्मेलन कर रहें लोगों पर गोलियां बरसा दी गई, केवल एक गेट खुला रखा गया, लोग कुएं में कुंदने लगे, दिवारों पर चढ़ने लगे, लेकिन नरसंहार जारी रहा, जिसमें हजारों लोग गोली के शिकार हो गए, लेकिन अंग्रेज सरकार केवल 370 लोगों को मृत एव 1200 से अधिक लोगों को घायल मानती है।
जलियावाला बांग हत्याकांड के हत्यारे के मौत की दास्ता
13 मार्च 1940 ई. को लंदन के कैक्सटन हॉल में ईस्ट इंडिया एसोसिएशन एवं रॉयल सेंट्रल एशियन सोसाइटी की बैठक चल रहीं थी। उस बैठक की दर्शक दीर्घा में एक ऐसा शख्स पहुंचा था जिसका मकसद था जलियावाला बाग हत्याकांड का बदला लेना। यह शख्स थे वीर भारतीय क्रांतिकारी सरदार उधम सिंह। इन्होंने एक मोटी किताब में अंदर के पन्नों को काटकर रिवॉल्वर छुपा कर रखा था। बैठक समाप्त होने के बाद उधम सिंह ने पंजाब के गर्वनर रहे माइकल ओ. डवॉयर के शरीर में दो गोली दाग दी। गोली मारने के बाद उधम सिंह भागे नहीं, तब पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया, ब्रिटेन में ही उनपर मुकदमा चला और 31 जुलाई 1940 को उधम सिंह को फांसी दे दी गई।
जवाहर लाल नेहरू की बात
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने माइकल ओ. डवॉयर की उधम सिंह द्वारा हत्या के बाद कहा था कि माइकल ओ. डवॉयर की हत्या का अफसोस तो है, लेकिन यह जरूरी था।
उधम सिंह और भगत सिंह
उधम सिंह भगत सिंह से प्रभावित थे, ये दोनों पंजाब से संबंधित थे, देशभक्त थे, हिंदु—मुस्लिम एकता के समर्थक थे, जलियावाला बाग कांड से आक्रोशित थे।
समझने वाली बात
माइकल ओ. डवॉयर पंजाब का तत्कालीन गर्वनर था जबकि जनरल डॉयर जलियावाला बाग नरसंहार का आदेश देने वाला अधिकारी था। डॉयर बिमारी की मौत मरा जबकि माइकल ओ. डवॉयर को उधम सिंह ने मौत के घाट उतार दिया।
नोट: उधम सिंह भारत भूमि से बाहर फांसी की सजा पाने वाले दूसरे वीर क्रांतिकारी थे।
इनसे पहले मदन लाला ढ़िगरा को कर्जन वाइली की हत्या के आरोप में वर्ष 1909 में फांसी दी गई।
31 जुलाई 1940 को ब्रिटेन के पेंटनविले जेल में फांसी दी गई थी।
1974 ई. में ब्रिटेन ने उधम सिंह के अवशेष भारत सरकार को सौंप दिए।