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भारतीय सेना की अदृश्य रेजिमेंट: टूटू रेजिमेंट, यह रॉ के जरिए प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करती है।

आज एक ऐसी सेना के बारे में बताएंगे जो अदृश्य है, परमवीर है, जिसके बारे में कोई नहीं जानता। भारत सेना की रहस्यमयी फौज, जिसके वार से बचना आसान ही नहीं नामुंकिन भी है। यह है टूटू रेजीमेंट।

टूटू रेजिमेंट के बारे में

टूटू रेजिमेंट भारतीय सेना का वह लड़ाकू दल है जिसके बारे में जानकारियां सार्वजनिक नहीं की जाती है। यह रेजिमेंट आज भी बेहद गोपनीय तरीके से अपने मिशन पर काम करती है। इस रेजिमेंट के सक्रिय होने का कोई भी सबूत आमजनता के समक्ष नहीं रखा जाता है।
इस रेजिमेंट में पहले सिर्फ तिब्बती युवा ही भर्ती किये जाते थे, लेकिन अब इसमें गोरखा के जवानों को भी भर्ती किया जाता है।
देहरादून से करीब—करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर प्रकृति सुंदरता से भरपुर चकराता नामक एक बेहद मनोरम पहाड़ी क्षेत्र है। इस क्षेत्र में भारत की सबसे रहस्यमयी फौज टूटू रेजीमेंट रहती है।

स्थापना
1962 ई. में भारत—चीन यूद्ध के समय आईबी चीफ भोला नाथ मलिक के सुझाव पर इस रेजिमेंट की स्थापना की गई थी। इस रेजिमेंट को बनाने का एकमात्र उद्देश्य यह था कि ऐसे बहादुर योद्धाओं को तैयार करना जो चीन की सीमा में घुसकर, लद्दाख की कठिन परिस्थितियों में चीन का काल बन सकें।
भारतीय सेना के रिटायर्ड मेजर जनरल सुजान सिंह को इस रेजिमेंट का पहला इंस्पेक्टर जनरल बनने का गौरव प्राप्त है। इस रेजिमेंट को इंस्टैब्लिशमेंट—22 या टूटू कहा जाता है। टूटू रेजिमेंट को शुरूआती प्रशिक्षण अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए ने मुहैया कराई थी। इसके बहादुर जवानों को अमेरिका की ग्रीन बेरेट आर्मी के तर्ज पर तैयार किया गया है। इस रेजिमेंट के वीरों के पास एम—1, एम—2, एम—3 जैसे आधुनिक हथियार भी है।

कारनामा
इस रेजिमेंट ने 1971 के भारत—पाकिस्तान यूद्ध, आपरेशन ब्लूस्टार, आपरेशन मेघदूत और 1999 के कारगिल युद्ध में अपने अदम्य साहस का परिचय दिया है।

रेजिमेंट का दु:ख
इस रेजिमेंट को सार्वजनिक सम्मान नहीं मिल पाता ,  इस रेजिमेंट के वीरों का सबसे बड़ा दु:ख इस बात का है कि शहादत के बाद इनको सार्वजनिक सम्मान नहीं मिल पाता। इसका मुख्य कारण है इसको गोपनीय रखना। इसी कारण इनके मिशन को गोपनीय रखा जाता है। बीतें कुछ सालों में एक बदलाव जरूर है कि अब इन्हें सेना के जवानों की तरह सैलरी मिलने लगी है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने कुछ साल पहले कहा था कि ये जवान न तो भारतीय सेना का अंग है और न ही भारतीय नागरिक। लेकिन भारत के लिए इनके समर्पण को देखते हुए इनको कुछ सम्मान अवश्य मिलना चाहिए जिसके बाद इनको कुछ सहुलियत मिल रही है।

यह ऐसी रेजिमेंट है जो सेना को रिपोर्ट नहीं करती है बल्कि रॉ और कैबिनेट सचिव के जरिए सीधे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करती है।

वर्तमान परिस्थितियों में यह रेजिमेंट सबसे कारगर साबित हो सकती है। भारत के पूर्व थलसेना प्रमुख दलबीर सिंह सुहाग इस रेजिमेंट की कमान संभाल चुके है। इस रेजिमेंट में आज भी कितने अफसर और जवान है, इनका प्रशिक्षण कैसे और कहां होता है यह आज भी रहस्य है।

चकराता

चकराता एक प्रतिबंधित क्षेत्र है जहां पर बिना गृह मंत्रालय की अनुमति के कोई भी नहीं जा सकता। चकराता में विदेशियों के आने की सख्त मनाही है।

भोला नाथ मलिक
भोला नाथ मलिक एक सिविल सेवा के अधिकारी और जासूस थे। यह भारतीय खुफिया विभाग के दूसरे प्रमुख 1950 से 1964 तक रहें। इनको 1964 में पद्म भूषण से सम्मानित किया जा चुका है।

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