भयावह रात
25 जून 1975 की वह काली रात जब एक घोषणा से पूरा भारत जबरदस्ती कैद कर दिया गया। सैन्य टुकडियां केन्द्र सरकार के इशारे पर लाठी बरसा रही थी। 1975 ई. में भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून को पूरे देश में आपातकाल की घोषणा कर दी। पूरे भारत में धारा 144 लागू कर दी गई। एक जगह चार से अधिक व्यक्ति इकठ्ठा नहीं हो सकते थे।
धारा—144
सीआरपीसी के अंतर्गत आने वाली धारा 144 क्षेत्र एवं देश में शांति व्यवस्था बनाने के लिए लगाई जाती है। इस धारा को लागू करने के लिए जिलाधाीश/मजिस्ट्रेट नोटिफिकेशन जारी करते है। हथियार लेकर घुमने की भी मनाही होती है। यह एक जमानती अपराध है। इसका उल्लंघन करने वाले को एक वर्ष तक की सजा हो सकती है। 1974 में इसे भारत में लागू किया गया था।
आपातकाल की घोषणा
26 जून की सुबह को आॅल इंडिया रेडियों से आपातकाल की घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कहा था कि राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद ने आपातकाल की घोषणा कर दी है, इससे डरने की जरूरत नहीं है, यह समय की मांग बन गई थी। उनका कहना था कि कोई देश की सेनाओं को विद्रोह के लिए भड़का रहा था। जिससे देश की एकता और अखंडता बनाएं रखने के लिए आपातकाल जरूरी था।
कब लगाया जा सकता है आपातकाल
आपातकाल सिर्फ दो ही स्थितियों में लगाया जा सकता है
1. जब देश पर बाहरी आक्रकण हो चुका हो
2. देश आंतरिक अशांति से जल रहा हो।
भारतीय संविधान में राष्ट्रीय आपातकाल लगाने का वर्णन अनुच्छेद 352 में किया गया है।
आपातकाल शुरू से अंत तक
आपातकाल 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक लगभग 21 माह चला। आजाद भारत के इतिहास में इसे काले अध्याय के रूप में देखा जाता है। इस समय नागरिकों के सारे मौलिक छिन लिए गए थे। अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोट दिया गया था। विरोधी राजनीतिक दलों के नेताओं को जेलों में बंद कर दिया गया था और कुछ राजनेता भूमिगत हो गए थे। गुजरात और बिहार में इनके विरूद्ध छात्र आंदोलन चरम पर था। आपातकाल के समय अखबारों के संपादकीय पृष्ठ खाली रहते थे अर्थात पत्रकारिता जगत का कोई भी आदमी अपनी राय/विचार नहीं लिख सकता था। कोई भी समाचार अखबार में छापने से पहले सरकार/एजेंसी को बताना पड़ता था। हालांकि बिना संपादकीय के अखबार बिकते रहें। लोकतंत्र में तानाशाही का बोलबाला था। आपातकाल के समय व्यक्ति के मौलिक अधिकारों को कुचल दिया गया था। आपातकाल के दौरान बिहार के सपूत जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया था जिसमें छात्रों ने पूरे दमखम से भाग लिया था।
आपातकाल के पीछे की कहानी
मीडिया और राजनीतिक गलियारों में ऐसा कहा जाता है कि आपातकाल की नींव 12 जून 1975 को ही पड़ गई थी। इंदिरा गांधी 1975 के आमचुनाव में इंदिरा गांधी रायबरेली से सांसद चुनी गई थी, जिनके विरोधी संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के राजनारायण थे जिन्होंने इस चुनाव में 6 आरोप लगाते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर दी।
इंदिरा गांधी पर 6 आरोप
1. इंदिरा गांधी ने चुनाव में भारत सरकार के अधिकारी यशपाल कपूर को अपना चुनावी एजेंट बनाया था, जिनका इस्तीफा राष्ट्रपति से मंजूर नहीं हुआ था।
2.इंदिरा गांधी ने स्वामी अद्वैतानंद को रिश्वत दी जिससे राजनारायण का वोट कट सकें।
3. इंदिरा गांधी ने वायुसेना के विमानों का उपयोग चुनाव प्रचार के लिए किया।
4. चुनाव जीतने के लिए इलाहाबाद के वर्तमान डीएम एवं एसपी की मदद ली गई।
5. मतदाताओं को लुभाने के लिए शराब और कंबल बांटे गए।
6. इंदिरा गांधी ने चुनाव में तय सीमा से ज्यादा खर्च किया।
इस आरोपों पर 12 जून 1975 को न्यायधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी को सरकारी मशीनरी के दुरूपयोग का दोषी पाया और उनके निर्वाचन को रद्द कर दिया तथा अगले 6 साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी। राजनारायण की ओर से शांति भूषण वकालत कर रहे थे। सुप्रीम कोर्ट ने इसके खिलाफ दायर याचिका को मानने से मना कर दिया। हालांकि न्यायालय ने उनके प्रधानमंत्री पद को बनाएं रखा लेकिन वोटिंग के अधिकार को छिन लिया। प्रधानमंत्री की कुर्सी जाते देख इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति की मदद से देश में आपातकाल लगा दिया।
आपातकाल की अच्छी बातें
सार्वजनिक व्यवस्थाएं सही हो गई थी जैसे ट्रेनों का परिचालन सहीं समय पर हो रहा था, सरकारी अधिकारी एवं कर्मचारी घुस लेने से डरने लगे थे/लेते ही नहीं थे। हर एक कार्य अनुशासित हो गया था।
आपातकाल के प्रकार और संविधान संशोधन
भारत में तीन तरह के आपातकाल लगाएं जा सकते है— 1. राष्ट्रीय आपातकाल 2. राष्ट्रपति शासन 3. आर्थिक आपातकाल
आपातकाल राष्ट्रपति संसद की लिखित प्रस्ताव के बाद ही लगा सकते है, लागू होने के बाद इसे संसद के पटल पर रखा जाता है पहले यह 6 माह के लिए लगाया जा सकता है यदि विरोध नहीं हुआ तो 6 माह और बढ़ाया जा सकता है, लेकिन देश में तो 21 माह तक आपातकाल लगाया था। आपातकाल समाप्त करने के लिए राष्ट्रपति का हस्ताक्षर ही काफी है, संसद की मंजूरी की आवश्यकता नहीं होती है। हालांकि न्यायालय इसकी समीक्षा कर सकता है। इंदिरा गांधी ने 22 जुलाई 1975 को संविधान में 38वां संशोधन कर न्यायालय से न्यायिक समीक्षा के अधिकार को छिन लिया था। पुन: 39वॉ संविधान संशोधन कर न्यायालय को यह आदेश दिया कि वह प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त व्यक्ति की जांच नहीं कर सकता। 1977 के आमचुनाव में जनता पार्टी की सरकार बनी और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री इन्होंने संविधान संशोधन कर न्यायालय को वे अधिकार वापस सौंप दिए और आंतरिक अशांति के स्थान पर सशस्त्र विद्रोह शब्द भी जोड़ दिया गया। जिससे आगे आने वाली कोई भी सरकार मनमर्जी से आपातकाल न थोप सकें।
राजद सुप्रिमों लालू प्रसाद यादव, बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार, उपमुख्यमंत्री सुशाील मोदी इत्यादि नेता आपातकाल की ही देन है।
आपातकाल के समय बिहार में छठवीं विधानसभा थी, जगन्नाथ मिश्र उस समय कांग्रेस पार्टी से मुख्यमंत्री थे।