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विश्व में लगातार बढ़ रहे प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग के कारण होने वाली समस्याओं के समाधान के लिए प्रतिवर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाने की शुरूआत हुई। पर्यावरण दिवस मनाने का उद्देश्य है कि लोगों को इसके प्रति जागरूक किया जाएं, लोग इसका संरक्षण करे, दोहन नहीं।
पर्यावरण
हमारे आस—पास उपस्थित पेड़—पौधे, नदियाँ, तालाब, नहर,वन, जानवर एवं अन्य जीवधारियों तथा भौतिक एवं रासायनिक कारकों जो मानव जीवन को प्रभावित करते है। उन्हें पर्यावरण कहा जाता है। पर्यावरण संस्कृत के दो शब्दों के योग से बना है परि—आस पास का क्षेत्र और आवरण—वह क्षेत्र जिससे मिलकर बना हुआ है।
आसान शब्दों में, हमारे जीवन को प्रभावित करने वाले सभी जैविक, अजैविक क्रियाएं पर्यावरण कहलाती है। जीवधारीयों और पर्यावरण के बीच अन्योन्याश्रय संबंध है मतलब दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए है।
घटक
पर्यावरण के जैविक घटकों में सूक्ष्म जीवाणु, कीड़े—मकोड़े, सभी जीव—जंतु, पेड़—पौधे और इनकी सारी जैविक क्रियाएं। अजैविक खटकों में चट्टाने, नदियाँ, तालाब, हवा, पर्वत इत्यदि आते है।

भारत के पर्यावरण को स्वच्छ एवं समृद्ध रखने के लिए यहां कम से कम 33 प्रतिशत वन अवश्य होने चाहिए।

विश्व पर्यावरण दिवस पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण के लिए पूरे विश्व में मनाया जाता है। 5 जून 1974 को पहली बार विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया। इसके सम्मेलन में हर साल लगभग 143 देश भाग लेते है। जिसमें सरकारी, सामाजिक, शैक्षिक और व्यवसायिक जगत के लोग पर्यावरण की सुरक्षा, समस्या ओर समाधान पर बात करते है।
विभिन्न वर्षो में पर्यावरण दिवस की थीम या विषय—
वर्ष                                                विषय
1974                                    केवल एक दुनिया

1975                                    मानव निपटान
1976                               पानी जीवन हेतु महत्वपूर्ण संसाधन

2019                                     वायु प्रदूषण

वर्ष 2020 की थीम है समय और प्रकृति या प्रकृति के लिए समय इस बार विश्व पर्यावरण दिवस के क्रार्यक्रम की मेजबानी जर्मनी के साथ कोलंबिया कर रहा है। इस बार कोरोना वायरस के बीच विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जा रहा है।
बढ़ते वाहन, कारखाने, उद्योग, कटते वृक्ष पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचा रहे है। बिना पर्यावरण के मानव जीवन संभव नहीं है। ऐसे में पर्यावरण को बचाना हमारा परम कर्तव्य है। भारत में भी पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए 19 नवंबर 1986 को एक अधिनियम लागू किया गया इस समय इंदिरा गाँधी भारत की प्रधानमंत्री थी।

वैश्विक महामारी के बीच पर्यावरण

वैश्विक महामारी कोरोना से जहां एक ओर मानव जाति को काफी नुकसान हुआ है वहीं मानव द्वारा अनियंत्रित प्रकृति के दोहन पर अंकुश लगा है। अब प्रकृति, जैव विविधता अपने सार्वभौम रूप में दिख रही है। इस समय प्रकृति (पर्यावरण) को दख कर लग रहा है पर्यावरण कितना सुंदर है, ईश्वर ने हमें प्रकृति के रूप में कितना सुंदर उपहार दिया है। प्रकृति इंसानो से अपने संरक्षण की आशा करती है। इसी को ध्यान में रखते हुए प्रतिवर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। जैव विविधता का अर्थ पृथ्वी पर पाएं जाने वाले विभिन्न प्रकार के जीव—जंतुओं के जीवन को कहा जाता है।

पर्यावरण बचाने के लिए कुछ उपाय
ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाएं सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग करें, बेवजह ध्वनि प्रदूषण न करें, सार्वजनिक स्थानों पर कचड़ा न फैलाएं, पॉलिथीन जैसे न सड़ने गलने वाले पदार्थो का उपयोग न करें। कपड़े के थैले का उपयोग करें, छोटे कार्यो के लिए पौधों के पत्ते का उपयोग करें, पशु—पक्षियों के लिए दाना—पानी की व्यवस्था रखें।

इतिहास
हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता हैं। इसको मनाने की शुरूआत 1972 के स्टॉकहोम सम्मेलन से हुई। यह 5—16 जून के बीच आयोजित किया गया था। उस समय संयुक्त राष्ट्र महासचिव यू थांत थे। वैश्विक पर्यावरण में हो रहे विनाश के खिलाफ चर्चा और इसे बचाने के लिए यह पहला अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन था। इसका अधिकारिक नाम मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन था। इसमें लगभग 1300 पर्यावरणविद्, अधिकारी एवं अन्य जागरूक लोग शामिल थे। सभी ने पर्यावरण जागरूकता की दिशा में कार्य करने के लिए सहमति जताई थी।

कोरोना वायरस और प्रकृति
कोरोना वायरस महामारी को रोकने के लिए भारत सहित लगभग सभी देशों ने अपने यहां लॉकडाउन की घोषणा कर दी जिससे जरूरी कार्यो के अलावा किसी को भी बाहर निकलने की अनुमति नहीं थी। सभी तरह के वाहन, कारखानों को कुछ दिन के लिए बंद कर दिया गया। लॉकडाउन के कारण अधिकतर देशों में प्रदूषण काफी हद तक कम हो गया है, जिस शहर में पीएम 2.5 300 को पार कर जाता था वहां अब यह स्तर 100 के नीचे आ गया है। पीएम 2.5 प्रदूषण मापने का एक पैमाना है। जैसे— पटना में लॉकडाउन के पहले प्रदूषण बेहद खराब स्तर तक पहुंच गया था जो अब पूरी तरह नियंत्रण में है। भारत की राजधानी दिल्ली में प्रदूषण स्तर में 49 प्रतिशत तक की कमी आई है। प्रदूषण में कमी से प्रकृति चारों ओर लहलहा रही है, चिडियां, जानवर सड़कों पर घुमते हुए देखे जा रहे है। दुर्लभ चिडियाओं की मधुर एवं मनमोहक ध्वनि कानों को शांति प्रदान कर रही है। नदियों का पानी साफ हो गया है कुछ दिन पहले हरिद्वार में गंगा जल को पीने योग्य घोषित किया गया था। इससे पहले वह नहाने योग्य भी नहीं थी केन्द्र सरकार गंगा की सफाई के लिए स्वच्छ गंगा मिशन नाम योजना चला रही थी। नदियों में डॉल्फिन प्रजाति भी देखने को मिल रही हैं। परंतु इस दौरान जानवरों पर हिंसक घटनाएं भी बढ़ी है काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान,असम में इस दौरान 10 जानवर मृत पाएं गए, राजस्थान में 10 जानवरों के शिकार की खबरे रहीं, केरल में एक हथिनी को अनानास में पटाखें खिलाकर मार दिया गया। ऐसी घटनाएं मानव संस्कारों की पोल—खोल रही है। यह बताने के लिए काफी है कि मानव कितना स्वार्थी है।

आक्सीजन

पेड़—पौधे मानव जीवन के लिए अनिवार्य आक्सीजन प्रदान करते है। यदि प्रर्यावरण शुद्ध है तब आक्सीजन की मात्रा सर्वाधिक प्राप्त होती है। पीपल और तुलसी का  पौधा सबसे ज्यादा आक्सीजन प्रदान करते है। पीपल एक ऐसा वृक्ष है जो 24 घंटे आक्सीजन प्रदान करता है। प्रदूषण शुद्ध पर्यावरण वर्षा कराने में भी सहायक होते है। ये मृदा कटाव को रोकने में भी सक्षम होते है।
1894 ई. में पहली राष्ट्रीय वन नीति की घोषणा की गई।
प्रदूषण
पर्यावरण में अवांछनीय, अयोग्य और दूषक पदार्थो के प्रवेश के कारण प्रकृति में उत्पन होने वाले असंतुलन, जो पर्यावरण की प्रक्रियाओं को बदल कर नुकसानदायक बना देते है, मानव और जीवधारियों को नुकसान पहुंचाते है, प्रदूषण कहलाते है।
प्रदूषण मुख्यत: तीन प्रकार के होते है— वायु प्रदूषण, जल, प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण। इसके अलावा सागरीय प्रदूषण और विकिरण प्रदूषण भी होते है।
वनों पर निर्भर समुदायों के विकास के लिए डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जन वन परियोजना लागू है।

पेड़ लगाओ, पेड़ बचाओं इस धरा को सुंदर बनाओ।

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