संयुक्त राष्ट्र संघ के मुताबिक कोरोना महामारी की वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था को करीब 85 खरब डॉलर का झटका लगा है। वहीं दुनिया की अर्थव्यवस्था में 3.2 प्रतिशत की कमी आने का अनुमान है। संयुक्त राष्ट्र संघ की तरफ से 13 मई को जारी वर्ल्ड इकोनॉमिक सिचुएशन एंड प्रॉस्पेक्ट मध्यावधि रिपोर्ट-2020 के मुताबिक अगले दो साल तक दुनिया के आर्थिक आउटपुट में 85 खरब डॉलर यानी 640691.75 अरब रुपये की कमी का अंदेशा है। आसान शब्दों में कहें तो बीते चार सालों के दौरान हुई आर्थिक प्रगति एक झटके में खत्म होती नजर आ रही है। संयुक्त राष्ट्र संघ के आर्थिक जानकारों के मुताबिक 1930 में ग्रेट डिप्रेशन के नाम से कुख्यात आर्थिक मंदी के बाद दर्ज की गई यह अब तक की सबसे बड़ी गिरावट है। यह सब तब हो रहा है, जबकि साल 2020 की शुरुआत में महज 2.1 फीसद की बढ़ोतरी का ही अनुमान लगाया गया था। वैश्विक कारोबार में साल 2020 के दौरान 15 फीसद की कमी का आकलन लगाया जा रहा है। क्योंकि कोरोना महामारी के कारण वैश्विक मांग और आपूर्ति की सप्लाई चेन बुरी तरह प्रभावित होगी।
लॉकडाउन : हर जगह असर
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार दुनिया की लगभग 90 फीसद अर्थव्यवस्था किसी न किसी तरह के लॉकडाउन का असर झेल रही है। इसके कारण न केल उपभोक्ता मांग और आपूर्ति शृंखला प्रभावित हुई है बल्कि कई लोग रोजगार से भी बाहर हुए हैं। मौजूदा स्थितियों में दुनिया का बड़ी और विकसित अर्थव्यवस्थाओं में 2020 के दौरान 5 फीसद की गिरावट का अनुमान लगाया गया है। जबकि, विकासशील देशों की आर्थिक उत्पादकता में 0.7 फीसद की कमी संभव है।
भारत समेत दक्षिण एशिया पर ज्यादा असर
रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण एशिया के लिए पूर्व में जहां 5.6 फीसद की जीडीपी ग्रोथ का आनुमान लगाया गया था, वहीं अब 2020 में यह -0.6% रहने का अनुमान है। जबकि 2021 में 5.3 फीसद जीडीपी बढ़ोतरी के पूर्वानुमान को कम कर 4.4 कर दिया गया है। यह रिपोर्ट कहती है कि घनी आबादी और कमजोर स्वास्थ्य क्षमता वाले इस इलाके ने बीमारी से काफी आर्थिक नुकसान उठाया है। भारत के देशव्ययापी लॉकडाउन का हवाला देते हुए यूएन की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इस फैसले का बड़ी आर्थिक कीमत भी चुकानी पड़ी है। ऐसे में भारत की आर्थकि विकास दर केवल 1.2 फीसद रहने का अनुमान है, जो 2019 में पहले की काफी कम रही थी। हालांकि, 2021 में भारतीय अर्थव्यवस्था के 5.5 फीसद की विकास दर पर लौटने का अनुमान लगाया गया है।
चीन को भी झेलनी होगी परेशानी
कोरोना की आर्थिक मार से चीन भी अप्रभावित नहीं है जहां से इस वायरल संक्रमण की शुरुआत हुई। यूएन की आर्थिक आकलन रिपोर्ट के अनुसार बीते चार दशकों में चीन की अर्थव्यवस्था में पहली बार किसी तिमाही में नेगेटिव ग्रोथ दर्ज की गई। वर्ल्ड इकोनॉमिक सिचुएशन एंड प्रॉस्पेक्ट मध्यावधि रिपोर्ट-2020 के कहती है कि मौजूदा साल में जहां चीन की विकास दर 1.7 रहने का अनुमान है। वहीं 2021 में यह 7.6 प्रतिशत की रफ्तार पर लौट सकती है।
तीन करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे आयेंगे
यूएन के अनुसार कोरोना महामारी से करीब साढ़ी तीन करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे आ जाएंगे। इसमें से 56 फीसद आबादी अफ्रीकी मुल्कों की होगी। साथ ही 2030 तक गरीबी के दायरे में रहने वाले लोगों की संख्या भी अब ज्यादा हो जाएगी।
उत्पादक निवेश पर भी ध्यान दे सरकारें
मंदी से उबरने के लिए भारत समेत कई मुल्कों की सरकारों ने अपने सकल घरेलू उत्पादन के 10 फीसद के बराबर आर्थिक पैकेज का ऐलान किया है। हालांकि, यूएन की रिपोर्ट कहती है कि इन पैकेज के बावजूद आर्थिक स्थिति सुधार की प्रक्रिया धीमी और लंबी होगी। संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक आकलन रिपोर्ट बड़े पैमाने पर धनराशि डालने वाले आर्थिक पैकेज को लेकर भी आगाह करती है। ऐसे में यह जरूरी है कि सरकारें यह सुनिश्चत करें कि आर्थिक सहायता प्राप्त करने वाले उद्योग उस मदद को उत्पादन बढ़ाने वाली क्षमताओं में निवेश करें। संयुक्त राष्ट्र ने इस साझा आर्थिक मंदी से निबटने में सभी देशों के बीच अधिक तालमेल और सहयोग पर खासा जोर दिया है।