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राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 22 अप्रैल, 2020 को कोरोना वायरस महामारी से लड़ रहे स्वास्थ्यकर्मियों पर हिंसा के कृत्यों को संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध बनाने वाले एक अध्यादेश को अपनी मंजूरी दे दी। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने महामारी कानून-1897 में संशोधन के लिए अध्यादेश को मंजूरी दे दी है। इस अध्यादेश के तहत डॉक्टरों और आरोग्यकर्मियों पर हमले करना अब गैर-जमानती अपराध होगा। प्रस्तावित कानून का सबसे महत्वपूर्ण पहलू ये है कि इसमें डॉक्टरों को कोरोना के खिलाफ लड़ाई के चलते मकान मालिकों द्वारा घर छोड़ने जैसी घटनाओं को भी उत्पीड़न मानते हुए एक तरह की सजा का प्रावधान किया गया है।

अधिकतम सात साल तक मिलेगी सजा

प्रस्तावित कानून में डॉक्टरों, नर्सों और पैरामेडिक स्टॉफ समेत अन्य सभी स्वास्थ्यकर्मियों पर हमला या उत्पीड़न को संज्ञेय अपराध की श्रेणी में गैर जमानती बना दिया गया है। ऐसे मामलों में मुकदमा एक महीने में शुरू करने और एक साल के भीतर केस का फैसला हो जाने का प्रावधान किया गया है। दोषी पाए जाने वालों के लिए कठोर सजा का प्रावधान किया गया है। इसका आधार हमले और उत्पीड़न की गम्भीरता को बनाते हुए सजा को दो श्रेणी में बांटा गया है। यदि अपराध ज़्यादा गम्भीर नहीं है तो सजा के तौर पर 3 महीने से 5 साल तक की कैद हो सकती है। साथ ही 50 हज़ार से 2 लाख रुपये तक के जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है। वहीं, यदि अपराध ज़्यादा गम्भीर है तो 6 महीने से लेकर 7 साल तक कैद की सजा के साथ साथ एक लाख रुपये से 3 लाख रुपये तक के ज़ुर्माने का भी प्रावधान किया गया है। इसके अतिरिक्त अपराधी को पीड़ित को मुआवजा भरना होगा तथा उसे संपत्ति को पहुंचे नुकसान के लिए उसके बाजार मूल्य का दोगुना का भुगतान करना होगा।

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