1 अप्रैल, 2020 को संयुक्त राष्ट्र ने घोषणा की कि नवंबर 2020 में ग्लासगो में होने वाली COP 26 (Conference of Parties) को 2021 तक स्थगित कर दिया गया है। यह निर्णय COVID-19 वायरस के खतरे तथा विश्व पर इसके प्रभाव के कारण लिया गया है। COP26 को पेरिस समझौते के बाद से एक महत्वपूर्ण जलवायु वार्ता माना जाता है। संयुक्त राष्ट्र के फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज द्वारा वार्ता में देरी के लिए सहमति के बाद यह निर्णय लिया गया।
इस वार्ता में देरी से पेरिस समझौते द्वारा निर्धारित लक्ष्यों पर सरकारों को ढील देने की आशंका उत्पन्न हो गयी है। IPCC (जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल) की 1.5 डिग्री रिपोर्ट ने चेतावनी दी थी कि विश्व का तापमान 2030 और 2052 के बीच निर्धारित 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा से आगे बढ़ जाएगा। वर्तमान में पूर्व औद्योगिक स्तरों की तुलना में विश्व का तापमान 1.2 डिग्री अधिक गर्म है। इसका उद्देश्य तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री से कम रखना है। क्योंकि, तापमान में अधिक वृद्धि होने पर ग्रह के सभी कोरल ब्लीच हो जाएंगे और अंततः समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को काफी हद तक प्रभावित करेंगे। यह धीरे-धीरे वैश्विक पर्यावरण और पृथ्वी पर अस्तित्व को प्रभावित करेगा।